विजयप्रशस्तिसार | Vijaya Prashastisaara
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपोद्धात्त |
अेम किचना दृढ़ ओर घगाढ़ था-सम्राट अक्षवर जैसे नरपात्नों को प्रति-
घोध करने में कितने साहस घोर उत्कर्ष का उन महालुभायों ने परि-
चय दिया था, एवं उस यवनराज्यत्वकात्न मे स्थधर्मरक्ता के ज्लिए यह
क्लोग केसे उद्यत थे यद्द सब बाते सूृक्ष्मतया इस अ्रन्थ में निगादित है।
सुतर्य यह भी छ्वात ड्ोगा कि-वे मदह्दाजुभाव ऐसे घुरंघर आचाये होने
पर भी तप-जप-संयम-त्याग बेराग्य में केसे सुदृढ़ थे ? । पुनः इस
पुस्तक के अवल्लोकन से ऐतिहासिक विपय के भी बहुत संद्ग्धि
रहस्यां का पता स्ग सकेगा ।
इस पुस्तक को मेने “ भ्रीविज्ञयप्रशस्ति ” नामक महाकाव्य के
ध्राधार पर निर्मित किया है। ओर फतिपय अन्य पुस्तकों से भी सहा-
यता छी है । तिस पर भी यदि किसी अशुद्धि को कोई पाठक सप्र-
माण सूचित करेंगे तो में द्वितीयाइति में उसे सह्षे खुधारने की चेष्टा
करूंगा ।
हस ग्रथ के निमोण करने में मेरे खुयोग्य ज्येष्ठ वन्धु, न्याय शास्त्र
के घुरंधर विद्वाब. महाराज भ्रीवल्ल्लभचिजय जीने बहुव सहायता
प्रदानदी है अतण्ख़ में आपका अजुग्ृहात हूं।
यद्यपि मेरी माठभाषा शुजराती है, तथापि इस पुस्तक को मेने
हिन्दी में लिखने का सादस किया है । गत एवं इसमें भाषा संबन्धी
अशुद्धियाँ का बाएुल्य होना रूब्सव है। आशा है कि पाठकबून्द उन
अशुद्धियाँ की ओर दृष्टिपात न करके पुस्तक के सारी को अचइण
करेंगे ।
कार्तिकी पूर्णिमा छः
घीर सम्वव् २०३६ क्त्ता
ता० २४-११-१२
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