श्रीभावभावना प्रकरणम् [भाग १] | Shribhavabhavana Prakaranam [Part 1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बा ष् है नि क हे ज ५ $.. | # |. हैंड -] न हि भरते हुए यूढ से गूढ विषयों का भाव-प्रदशन करने में द्विवेदी जी को शैली प्रसिद्ध है। भाव-प्रकाशन में द्ववंदी जी ने तीन प्रकार की गद्य-शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों की भाषा भावों के अनुरूप रखी गई है । (१), व्यंगात्मक शैली में (द्विबंदी जी ने भाषा को व्यावहारिक बनाने की चेष्टा ' की है जिससे साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति भी उसे पढ़कर आनन्द लाभ कर सके । यह शैली उदू -हिन्दी मिश्रित .है। मसखरापन, द्वास्थ-रस का विशेष , ' गुण है | (२) द्विवंदी जी की दूसरी शैली आलोचनात्मक होती है | इस शेली की भाषा कुछ गम्भीर और संयत द्वोती है | हास्य-व्यंग का समावेश इस शैली में नहीं होता | भाषा की रूप प्रथम शैली के अनुरूप दी होता है; किन्तु .' कथन की प्रणाली आलोचनात्मक़ होने के कारण गम्भीरता ओर ञ्रोज की , विशेषता भलकने लगती है 'इसमें उदः के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी पाया . जाता है। (३) द्विवेदी जी की तीसरी शैली गवेषणात्मक रचनाओं के अनु कू। है। इस शैली की भाषा शुद्ध और संस्कृत शब्दों के प्रयोग से युक्त है। ' इस शैली के भाव प्रदर्शन में विशेष गम्भीरता है किन्तु तो भी दुरूहता का प्रादुर्भाव नहीं हुआ है । बोधगम्यता और स्पष्टीकरण का इसमें पूरा प्रभाव है। इस रचना-शैली .से यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि लेखक किसी ' गम्भीर विषय का प्रतिपादन कर रहा है । ' इस प्रकार द्विवेदी जी ने भाषा को शुद्धत और एकरूपता को स्थिर करने में बड़ा योग दिया ओर दिन्दी के अनेक लेखकों का रचना-काल इनकी शैलियों के द्वारा प्रारम्भ हुआ । 'सरस्व॒ती? ने इस कार्य मे विशेष सहायता , और सहयोग दिया | दिवेदी जी ने अपनी सम्पादन-पटुता से सैकड़ों लेखकों माने जाते हैं। ओर क्रवियों को प्रोत्साहित किया | वर्तमान समय में आप हिन्दी के आचाय ! ह माधवप्रसाद मिश्र मिश्रजी यद्यपि गद्य-लेखकों मे श्रन्य लेखकों की ' भाँति, प्रश्तिद्ध नहीं प्रास कर सके; किन्तु उनके लेखों में उनके ब्यक्तित्व की छाप है | इनकी गद्य 1 / ५




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