यही वृन्दावन रज | Yahi Vrindavan Raj

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Yahi Vrindavan Raj by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वह क्षण मैंने तो न जाना और चाहा वह आया मैं तिनके सा उडा और बह गया बहता गया वह थमा मे रूका लौटता निज कोटर म पक्षी सा फिर उडा और उड़ गया। यह उडना और उडना मात्र बहना नीड पर थिर हो बैठना सचमुच ही वरण है. ? हाँ जिया क्या सचमुच जिया पूछता था वृक्ष ऑँख पटटी पर रखे चहु ओर जाता चाक के इस सौदागर हाट मे जो चलता रहा अहर्निश चलता रहा।




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