हरी दूब का सपना | Hari Doob Ka Sapna

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Hari Doob Ka Sapna by नन्द भारद्वाज - Nand Bharadwaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीव बसे परदेस एक अनचीते हर्ष और उछाह में तुम इंत्तजार करती हो घर की मेड़ी चढ़ चारों ओर आगे खुलते रास्ते पर अटकी-सी रहती अबोली दीठ पहचाने पदचिन्हों की छाप बनी रहती है मन के मरुस्थल में अनुराग भरे अंतस में 'उमगते अपनापे के गीत अदेखी कुरजों के नाम सम्हलाती झीने संदेसे! हथेलियों रचती मेहँदी और गेरूं-वर्णी आसमान में सिरजती सलोनी सूरत की सुधियाँ भीगी पलकों से हुलराठी हिलता पालना! आँगन के अध-बीच निरखती चिड़ियों की अठखेलियाँ नीड़ों में लौटकर आते पंखेरुओं की पाँद हरी दूब का सपना * :




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