महाराणा कुम्भा | Maharana Kumbha

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Maharana Kumbha by रामवल्लभ सोमानी - Ram Vallabh Somani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) राज तृतीय को केरल सालवा सौराष्ट्र प्रौर चित्रकूट को जीतने वाला वर्णित किया है 1 लाट श्रौर मालवे में अपने वंशजों को उसने जागीरें दी थी । मेवाड़ के धनोप श्र गोड़- वाड़ के हूंदुडी ग्रामों से राष्ट्रकटों के लेख मिले हैं । धनोप मेवाड़ में शाहपुरा के पास स्थित है । इसमें राष्ट्रकूट राजा भल्लिल ग्रौर उसके पुत्र दन्तिवर्मा पर दो पुत्र बुद्धिराज भ्रौर गोविन्दराज का उल्लेख है । ये नाम दक्षिणी भारतीय राष्ट्रकट राजाओं के नामों से मिलते हैं । श्री बुल्हर ने राधनपुर के दानपत्र को सम्पादित करते हुए वर्णित किया हैं कि गोविन्दराज ने भीनमाल से मालवा जाते समय दोहद या कु भलगंढ़ का मार्ग लिया होगा । गोड़वाड़ श्रौर शाहुपुरा के श्रासपास लेख मिलने श्र चित्रकट विजय का उल्लेख होने से प्रतीत होता है कि उसने कु भलगढ़ के झागपास से मेवाड़ प्रदेश में प्रवेश करके शाहपुरा के श्रासपास प्रदेश को विजय किए आर यहां अपने सम्बन्धी को जागीर दी श्रौर वहां से चित्तौड़ जीतकर मालवा चल। गया । श्रीजम्स फेथफूल फ्लीट ने उक्त प्रमोधव्ष के दानपत्र को सम्पादित करते हुए वर्शित किया है कि चित्रकूट दुर्ग बुन्देलखण्ड में स्थित है। लेकिन उनकी यह धारणा गलत है । मेवाड़ के चित्रकूट का कई वर्षों से दक्षिणी भारत से बराबर सम्पकं था । जैन साधु बराबर दक्षिणी भारत से यहां आया जाया करते थे । दिगम्बर जेन सूत्रों से पता चलता है कि भ्रमोघ वर्ष के गुरू जिनसे . - चाय के गुरु वीरसेनाचार्य का मेवाड़ के चित्रकूट से बड़ा सम्बन्ध रहा है । इन्होंने चित्तौड़ के एलाज़ायं नामक एक साधु से शिक्षा प्रात. की थी एवं यहां से ही जाकर इन्होंने बड़ौदा में धवला टीका पूर्ण की थी । अ्पश्रेश के पउम चरिउ नामक दिगम्बर जैन ग्रन्थ में मेवाड़ के चित्तौड़ का कई स्थलों पर ४४ उल्लेख है । इसमें एक बार स्त्रियों के सौन्दर्य का २६. जगतुगं इतिश्रुतः । केरलसालव सोटान्‌ चित्रकूटगिरी दुरगेस्थान (इ० ए० जिल्द १२ पूृ० १२८) ३८ इ० ए० भाग बं० पृ १७४ सें डी० श्रार० भण्डारकरका लेख एवं देवीप्रसाद के राजमुताने में प्राचीन शोध में प्रकाशित धनोप का लेख । ए० इ० भाग १० पु- २० एवं नाहर जन लेख संग्रह भाग १ पर? २३४लेख सं ८९८ में प्रकाशित हंदूडी का लेख । २१. कालेगते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटतुरवासी । शी नानेलाचार्यों बभुव सिद्धान्ततत्वज्ञ 11 १७६।३॥ तस्यसमीपे सकलसिद्धान्तमधीत्य वी रसेनगुरु । उपरितिमनिबन्धनाद्यधिका रानष्ठं लिलेख ॥१७७।। श्रतावतार देवसेन सुरि द्वारा विरचित दर्शन सार ग्रन्थ में सिरिवीरसेर सोसो-. जिशसेखो सयल-सत्थ विष्णाणी ॥ ३११ वशित है । . सासे हिःचउरद्ध हि चित्तकूड़ बोलीरई 11811 २४ वी संधि त॑ चितउड्‌ सुएवि तुरन्तई ।. दसउरपुर सीमान्तरू पत्तई ।। १४1१ ॥। २४ वी संधि भउहा जएण उज्वेखएरा । ं भालेणश वि चित्ताउडएर ॥। १३ ॥ ४६ संधि धत्ता ८ दे उ्द्




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