विवेकानन्द चरित | Vivekanand-charit

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Vivekanand-charit by सत्येन्द्रनाथ मजूमदार - Satyendranatha Mazumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालक विवेकानन्द टू करने के लिए लाखों वालक वालिकाओं के आनन्द कोलाहल से बंगभूमि का प्रत्येक गृहप्रांगण मुखरित हो उठा । धीरे धीरे नामकरण का दिन आया । बालक की आकृति बहुत कुछ उसके सन्यासी पितामहू की तरह देख परिवार के कुछ लोगों ने णिशु का नाम दुर्गादास रखने की इच्छा प्रकट की । परन्तु माता ने अपने स्वप्न का स्मरण कर कहा उसका नाम वीरेइवर रखा जाय । आत्मीयजन उस नाम को संक्षिप्त बनाकर विले कहकर पुकारते थे । अन्त में शुभ अन्नप्रादन के समय बालक का नाम रखा गया नरेन्द्रनाथ । प्रत्येक हिन्दू सन्तान के दो नाम होते है एक राशिनाम और दूसरा जनसाधारण में प्रचलित नाम । इसलिए भविष्य में यह शिशु नरेन्द्रनाथ नाम से ही सर्वेसाधारण मे परिचित हुआ । अशान्त नरेन्द्रनाथ ज्यों ज्यों बड़े हुए त्यों त्यों अधिकाधिक नटखटी होते चले । स्वेच्छाचारी बालक के अदठिष्ट आचरण से सभी लोग तंग आ गये थे । भय फटकार या धगकी आदि किसी भी तरह से अपनी इस उद्धत सन्तान को विनयी और विनम्र बनाने में असमथं देखकर माता ने एक अदृभूत उपाय. का आवि- ष्कार किया । शिव दिव कहते हुए सिर पर कुछ जल डाल देने से ही मन्त्रमुग्ध साँप की तरह बालक नरेन्द्र श्यान्त हो जाया करथें थे । आशुतोष छिव जलाशिषेक से ही सन्वुष्ट होते है-- इस विश्वास से माता ने इस नवीन उपाय का आविष्कार किया था इसमें सन्देह नहीं । बालक का जन्म शिव के अंश से हुआ है इस पर दृढ़ विश्वास होते हुए भी वृद्धिमती माता यह बात किसी के पास प्रकट न करती थी । एक दिन वालक के ऊधम से तंग आकर उन्होने कह ही तो डाला महादेव ने स्वय न आकर




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