तत्वमाला अर्थात जिनेन्द्रमत दर्पण द्वितीय भाग | Tatvmala Arthat Jinendramat Darpan Dwitiya Bhaag

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Tatvmala Arthat Jinendramat Darpan Dwitiya Bhaag by शीतल प्रसाद - Sheetal Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छितीय माय ४“ (२३) दुपरोंग्रे मन करें, यदि ऐसा ने करके अपने शानकों छिपा कर '- रे तो शानावरणी द्मके कश््वके मयी नहीं है ! हे हमरे जनी माईयो ! आप अपने प्राचीन शर्तों की पहुकर उस ९ पर-चलनेकी कोशिश दीजिये | आपके शास्त्र नव पुझा पुकार कर बहते हैं.कि “शान विदा करनी दुखदाई, अज्ञानी कोटि वर्ष तप : ढपे तो मितने दो क्षय हो उते कर्मोंड़े ज्ञामी एक कण भर तप करके नाश दर सड़से हैं ” ठो बर्यों माप शागशुन्य अवस्था अपनी करते जाते हैं| भाएने भप्नेड़ो अशानी बनाकर घपना पर्मे दम रास्य पट सदर गर दिया। शाप्का रहा एहा व्यापार भी चछा जार है । आप सराप्तर देखते हैं, पर डुछ 3प1व नहीं करते । बह भार स्वड्ा मगाना नहीं, चेष्टाका दे। यदि डघोगी पुरुष दो तो बहु बुछफर सषता है। आपकी सेटी भी आपसे निककदर जापसे ज्यादा : जानकारों (अग्रेही व्यापरी/के हाममें चढी नारदी दे । भापकी रुईकी खेती कुछ दिनमें सुरुषियन उद्योगी व्यापारियेंद्रि हाथमें चढी जाप्रगी | आप यह्द देखते हुए भी हक्लि भाषे भाई जाशन निदाप्ती पुरुषोंनि कितनी ४छति कपनी की है, थाप बिकृकुछ थे खबर हैं | भावागके छोग वीडमन्नी देँ। वे भी जेन धर्मफे माफिक * ज्ञानको सर्वोत्तम समझते दें। 3स्होंने शाख्राजुस्तार अःज्ञाकों मान जश्ञानकी इतना बढ़ाया कि ५० वर्षरे भीतर भीतर कुछ सौदाग- रीकी, चीमें ( दियाप्तठाई, “बटन, सुई, फंची, - कपड़ा इस्ादि * रोमफी कामकी चीनें ) नो पहले विलयतसे मेगाते थे सपने घरें 'अछ्युत करने छगे | माइयो ! भापानकी तरवद्लीका केवल कारण « विद्याका प्रचार '-पि/ धर्मपाछ :ता० १८ धप्रैल १९४४! ह्च्ढे थे




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