कालिदास एवं भवभूति के नाटकों में चित्रित सौन्दर्य तथा प्रेम - एक तुलनात्मक अध्ययन | Kaalidas Avam Bhavbhuti Ke Natako mein Chitrit Sa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
349 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की मुहर देखे उन दोनो कैदियों को किसी प्रकार मुक्त न करे ।
चतुर्थोश्रिक :- द द
मालविका तथा वकुलावविका के कारावास से राजा को बड़ा खेद हुआ । उनके
खेद तथा प्रार्था से परवश होकर विदृषक ने एक उपाय सोचा और तदनुसार राजा को धारिणी के
पास उनकी खबर लेने के लिये भेजा । इधर विदृषक ने एक तिकडम उपस्थित किया । उसने
अपने हाथ में केतकी-कण्टक से सर्पदेशन का दाढ़ बना लिया और मिथ्या सर्पदेशन की बात फैलाकर
सब को चिन्तित कर दिया । उसने यह ग्रचार किया कि रानी को सलामी में देने के लिये मैं फूल
लेने गया था कि मुझे कालासप ने काट लिया । रानी को इससे बड़ी चिल्ता होने लगी कि संयोगयवश
अगर इस सपदेशन से इसके प्राण गये तो यह ब्रहमहत्या का कलंक मेरे ही माथे चढ़ेगा । विदृषक
विषवेग वाले जनका स्वांग बनाकर दरबार में उपस्थित हुआ जहाँ राजा, रानी और कौशिकी वगैरह
उपस्थित थे । विद्ृूषक ने विषवेग का ऐसा प्रदर्शन किया कि सभी चिन्तिह्हों उठे । राजा ने विदृषक
की विषचिकित्सा के लिए अपने वैद्य श्रुवसिद्धि को आदेश भेजा, विदृषक धरुवसिद्धि के पास गया
धृुव्सिद्धि ने उसकी चिक्त्सा में 'नाममुद्रां की आवश्यकता बताई । सभी के सामने एक ब्राहमण
के जीवन का प्रश्न था । किसी को कुछ सोचने का अवसर नहीं था । धारिणी के पास नाममुद्रा
वाली अंगूठी थी, रानी ने तत्क्षण वह अगुंठी जयसेना को दें दी । अंगूठी देखते ही विदृषक का कृत्रिम
विषवेग उतर गया । उसने वहीं अंगूठी दिखाकर मालविका और वकुलावलिका को कारावास से मुक्त
कराया । वहाँ की रक्षिका से कह दिया कि राजा की कुण्डली देखकर दैवज्ञों ने बताया कि ग्रहनस्थिति
कुछ मन्द है, इसीलिये उसके शान्त्यर्थ सभी बन्दी जन छोड़े जा रहे हैं । देवी ने केवल इरावती
का दिल रखने के लिये अपनी परिचारिका को नहीं भेजकर मुझे भेजा है जिससे इरावती को यही
मालूम हो कि राजा छोड़ रहे हैं इसमें देवी का कोई हाथ नहीं है । संकेतानुसतार - राजा विदृषक,
मालविका और वकलावलिका सभी समुद्रग्रह में मिले । मालविका और राजा दोनो एक दूसरे से दिलखोलकर
मिले, मालविका ने देवी का भयमात्र अपने मिलन का प्रतिबन्धक बताकर आत्मनिवेदन कर दिया
विदूषक और वकुलावलिका आसपास छिपे बैठे रहे । यह प्रणयल्लीला चल ही रही थी कि इरावती
फिर वहा आ गई, उसके साथ उसकी परिचारिका निप्णिका भी थी । सुमुद्रगृह के दंखाजे
स्वप्न में बक रहा था - मालविके, राजप्रिया होओ, इरावती को राजुप्रणय से
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