प्राकृत - व्याकरण | Prakrit - Vyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ( श्री भ्वनारायण जिपाठी शास्त्री सभापति, जिला काग्रेस समिति, मोतिहारी तथा श्री सोमेश्वरनाथसञ्चजालक मण्डल, अरेराज ) सस्क्ृत भाषा की अपेज्षा प्राकृत भाषा अधिक कोमल तथा मधुर होती है। 'परुसा सक्षअ बचा पाउञअ बधो वि होइ सुउमारो । पुरिसमहि: लाण जेत्तिअ मिहन्तर तेत्तिअमिमाण” जथात्‌ सस्क्ृत भाषा परुष ( कठोर ) तथा प्राकृत भाषा सुकुमार होती है। और इन दोनों भाषाओं से परस्पर उतना ही सेद्‌ है जितना एक पुरुष और सत्री मे । भाषा के अनुसार जाज तक के समय को तीन भार्गों में विभक्त कर सकते है--सस्क्ृत, प्राकृत और आजकर की भाषायें, यथा--हिन्दी, मराठी, गुजराती और बंगला आदि। सस्क्ृत भाषा में हिन्दुओं के आचीनतस ग्रन्थ वेदों से लेकर काव्यों तक के ग्रन्थ सम्मिलित हैं। आक्ृत भाषा मे बोद्धों तथा जेनियों के धामिक अन्थ एवं कुछ काव्य अन्थ भी है । इस भाषा का विकास ईसा से ६०० वर्ष पहले हो चुका था । आरकृत भाषा की उत्पत्ति के निर्णय के पूर्व यह विचारना आवश्यक है कि 'किसी भी नई भाषा के जन्म की क्‍यों आवश्यकता पडती है ९? यदि हम छोंग इस प्रश्न पर गोर से विचार करें तो यह स्पष्ट मालूम हो जायगा कि मनुष्य कष्टसाध्य प्रयल्ल करना नही चाहता । वह जिह्ढा, कण्ठ, ताल आदि स्थानों से अधिक प्रयत्न द्वारा शब्दों का उच्चारण करना पसद नही करता। यही कारण है कि धीरे-धीरे भाषा मे कुछ विक्ृतियाँ उत्पन्न होती जाती है। कुछ दिनों के बादु उसीं का एक स्वरूप बन जाता है, वहीं प्रधान बोलचार की भाषा बन बेठती हैँ और उसी मे काव्य आभादि की रचना आरम्भ हो जाती है। वेद्क




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