कैदी | Kaidi

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Kaidi by शान्ता कुमार - Shanta Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यदि तुम्हारे बाद्शों के अनुसार जीवन चलाना है तो सुझे आज एक तरकीब सूझी है ।” हा “मच ! कया ऐसा हो सकता है ?” रेखा उछल पड़ी । हो सकता ही नहीं, राजीव तुम्हारे लिए करके भी दिखाएगा।” रेखा के कम्धे पर हाथ रखकर उसे कमने हुए वह बोला | अ्वताओं जल्दी बताओ ! ” रेखा को अब ग्रतिज्षा करना कठिन हो रहा था । “हर मास की पहली तारीख को से लगमग एक लाख रुपया बैक से निकलवाकर अपने आफिस खाता हूं । किसी योजना से वह घन उड़ाया जाए, फिर नौकरी छूट जाए या छोड़ दी जाए और उस धन से अपना उद्योग चलाया जाए । राजीब का हाय कुछ द्वोला पढ़ गया । बह सामने शून्य में देखने लगे पढा। * फिर ? चुप्र क्यों हो गए ?” «फिर कार, कोटी, ऐद्वर्य *** “मच्च*““बहुत बटिया'*“सूब मज़ा आएगा***जीवन जीने का ।/ रेखा खुशी से उछल पड़ी । उसने अपना सिर राजीव वी गोद में रस दिया। उसकी आंखों में एक सपना ते रने लग पा । उसने देखा उसकी गरीबी व अमाब के दिन पुर मे उड़े जा रहे हैं । “पर कितनी भी सावधानी रखी जाएं, यह भी संभावना है कि पकड़ा जाऊं और जेल नेज दिया जाऊं।” अनही*““नही* तुम्हें जेत मिजवाकर मुझे कुछ नहीं चाहिए ।” रेखा मानों आसमान से जमीन पर जा गिरी 1 “देखो रेखा, वैसे तो योजना ऐसी बनाऊंगा कि साफ वचकर निकल आऊ, पर यदि पक्डा भी गया तो क्या है, दो-तीन वर्ष की कैद ही तो होगी ' घन तुम तक पहुंच जाएगा । अपने सारे जीवन को सुखी वनाने के लिए यदि दोलीन वर्ष की कद भी भुगत लो जाए तो कोई बडी बात नही है। इसके सिवाय और कोई चारा भी तो नहीं 1” अकया योजना ऐसे तरोके से नहीं बत सकती कि तुम पर किसीको सत्देह तक न हो सक्ले ?”




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