जैन शिला लेख संग्रह भाग - 1 | Jain Shila Lekh Sangrah Bhag - 1

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Jain Shila Lekh Sangrah Bhag - 1  by श्री हीरालाल जैन - Shri Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन दिगम्बर जैन सम्प्रदायके शिलालेखों, ताम्रपत्नों, मूर्तिकेखों और अन्थप्रशस्ति- योमें जनधर्म और जेन समाजके इतिहासक्री विपुल सामग्री बिखरी हुईं पडी है जिसको एकत्रित करनेफी बहुत है बडी आवश्यकता है । जब तक “जेनहितेषी ! निऊछता रहा, तब तक में बराबर जैनसमाजके शुभचिन्तकोंकरा ध्यान इस ओर आऊर्षित करता रहा हूँ । परन्तु अभी तक इस ओर कुछ भी प्रयत्न नही हुआ है और जो कुछ थोड़ासा इधर उधरसे हुआ भी है वह नहीं होनेके बराबर है । बड़ी प्रसन्नताफ़ी बात है कि बाबू हीराछाछजीफी कृपा ओर निस्वार्थ सेवासे भाज मेरी एर बहुत पुरानी इच्छा सफल हो रही है ओर जेन शिलालेखसग्रहका यह प्रथम भाग प्रकाशित हो रहा है। बाबू हीरालालजी इतिहासके श्रेमी और परिश्रमशीरू विद्वान हैं। उनके द्वारा मुझे बड़ी बड़ी आशाये हैं। वे सस्कृृतके एम० ए० है। इलाहाबाद यूनीवर्सिटीफी ओरसे उन्हे दो वे तक रिसर्च स्काल- रशिप मिल चुफ्री है ओर इस समय अमरावतीके किंग एडवर्ड काछेजमे वे सस्क्त- तके श्रोफेसर है। कारजाके जैनशात्लभण्डारोंडा एक अन्वेषणात्मक विस्तृत सूचीपत्र सी० पी० गवनमेण्टकी ओरसे आपने ही तैयार किया था, जो मुद्रित हो चुका हैं। आपकी इच्छा है कि शिलालेखसग्रहके और भी कई भाग प्रकाशित किये जायें और उनके सम्पादनका भार भी आप ही लेना चाहते है। सुझे आशा है कि माणिऊचन्द्र ग्रन्थमाठाकी प्रबन्धफ्रारिणी कमेटी इस भागके समान आगेके भागोंक्नो भी प्रकाशित करनेका श्रेय सम्पादन करेगी । असख्तव्यस्त और जीर्णशीणें अवस्थामें पड़े हुए जैन इतिहासके साधनोंकों अच्छे रूपमे ग्रकाशित करना बड़े द्वी पुण्यका काये हे । निवेदक--- नाथूराम प्रेमी




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