पट खंडागम | Pat Khandagam

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Pat Khandagam by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ठ 5८ झुद्ठि-पन्न ११ पक्ति अधुद्ध २० क्षयोपशमक्त अभाव इोनेसे उसकी उत्पत्ति न दो ८ सकत्तसय १९ होनेपर सात २ महुनगाणि ५ थ राहुणिज्जा ५ ॥६१६५९॥ १५ तियमैचोंके बात १६ शुक्र सत्व स्भाव रूप, तथा २८ * तिलयाधग ? हति पाठ खसायराणतो गामिणो ॥ २२॥ स्खुप्पण्णा चेणश्या णारिसी १८ ऐसी ७ ८ धरगम्मये ४ तवाण मण २३ ऋ्धिधारकों १ तप्ततव । जले ४ 6९८ 6६ ती 40 ३ सहियाण जिणाण ११ है। जिनके १३ सक्षित जिनोंको ५ जुवायेण ९ पारसब्विहृत्तउ ४ घोरषभ ७ अधोरयम १९ अपोणद्ष शुद्ध न क्षयापशमका भमाव कारण हो अगुद्डपसेणादिसत्तसय दवोनिपर अगुष्ठप्रसेनादि सात मद्ठ अगाणि यराहणिज्ज्ञा 1१९॥ इदि ., तिय॑चोंके स्तन, स्वभाव, बात झुक्र, तथा * तिलयाणय *, मप्रतौ स्वीकृतपाठ सायराणमतों गामिणों ॥ २२ ॥ इदि स्सुप्पण्णा पण्णा देणइया तबोबलेण एरिसी तपके बढ्से ऐसी घगस्मदे सवाणे ज्ञिणाण मण ऋद्धिधारक जिनोंको तप्ततप । तप्त तपो येपा ते सप्ततपस, 1 जाल सद्ियाण तत्ततवाण जैणाणं है| तप्त तप जिनके पाया जाता है ये तप्त- तपञले ऋषि हैँ | जिनके सद्दित तप्तवपवाछे जिनोंको शुदीयण बारसधिददतउ घोरगुणबम अधोरगुणबम अपोरगुणवक्ष- का छ्च्च




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