पाँखुरियाँ गुलाब की | Pankhuriya Gulab Ki

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Pankhuriya Gulab Ki by गुलाब खंडेलवाल - Gulab Khandelwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा प्यार जी उठता, धडी मरने की टल जाती जो तुम नजरो से छू देते तो यह दुनिया बदल जाती उन्ही को दूढती फिरती थी आखे जानेवाले की न करते इतजार ऐसे, किसी की रात ढल जाती हम उनकी वेरुखी को ही हमेशा प्यार क्यो समझे कभी तो मुस्कुरा देते, तवीयत ही वहल जाती उाही को चाहते है अपने सीने से लग( ले हम कि जिनको याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती वे दिन कुछ और ही थे जब ग्रुलाव आखो मे रहते थे बिना ठहरे ही डोली अब वहारो की निकल जाती पशुरियाँ गुलाब को




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