प्रवचनसार | Pravachansaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्बचनसार........... . 8३
संपज्जदि णिव्वाएं देवासुरमएुयरायविहवेहि ।
जीवस्स चरित्तादो दंसणणाणप्पह् णादो ॥९॥
. 5 बिशुद्धदशनज्ञान. प्रधान तेपामाश्रमम ।
गत्वा साम्यमवाप्नोमि निर्वाणावाप्तिरित्यतः ।।१॥
. सद्दृशिज्ञानपुक्तेन. चरित्रिशेशह देहिनाः ।
सम्प्ते सम॑ मुक्ति सरेशनृपवेभवं)! ॥३॥
... उनके अ्रवचनसारको यहाँ हिन्दी छन्दोंसे गाऊ। .
+. अपना और भद्रलोगोंका जिसपरसे हित कर पाऊँ॥
द . सम्यंग्ज्ञानसहित चेतनका चरित सदा सुख भरता है|
श्री सुरेश (देवासुर) मानवराज विभवयुत शिवपदको करता है ॥१॥
द सारांश।--सम्यकदर्शन सम्यकंशञान सहित जो सम्यकचारित्र है
वह सराग और वीतरागके भेदसे दो प्रकारका होता है ॥ वीतराग
चारित्रसे तो साक्षात् निर्वाणकी प्राप्ति होती है किन्तु सराग चारित्रसे
: देबेन्द्रपद. प्राप्त करके तद॒परान्त मनुष्यभवमें चक्रवर्ती या बलदेव वगेरह
की राजविश्वृतिको प्राप्त करके फिर मुनि होकर मुक्ति प्राप्त करता है।
एवं सरागचारित्र परम्परा मुक्तिका कारण माना गया है; यही यहाँ
बतलाया है। मूलग्रंथकी छठी गाथाका शुद्ध पाठ 'संपज्जदि णिव्वाणं
: देवेसुरमणुयरायविहवेहि' ऐसा है क्योंकि सम्यक्हृष्टि .जीव मरकर
५ असुरोंमें कभी भी उत्पन्न नहीं होता है। यह बात दूसरी है कि कोई
- सम्यर्ृष्टि जीव चारित्र धारण करके भी किसी असुरकुमारकी विभूति-
. को देखकर उसका सम्यक्त्व नष्ट हो जानेसे लालायित होकर निदान
. बंध करले तो वह मरकर धरंणीन्र जेसी अवस्था भी प्राप्त कर लेता
> है । इस अपेक्षासे 'देवासुरमणुयरायविहवेहिं' ऐसा पांठ भी हो सकता
है। द
आगे चारित्रके स्वरूपको प्रगट कर बतलाते हैं :--
. चारितत खलु धम्मो धम्मो जो सो समो ति शिहिट्रो 1
मोहक्खोह विहीणों परिणामों अप्पणो हु समो ॥७॥
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