ब्राह्मणोद्वार कोष | Brahmanodwar Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
872
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समर्पणम्
ओं धघी-धाम-प्रचेतिन्ये शब्द-ब्रह्म-स्वयस्भुवे ।
भगवत्ये सरस्वत्ये. भूयोभूयों. नमोनमः॥ १॥
शान-विज्ञान-जीवन्ती सारिणी . भय-वारिणी |
शरणं में परं भूयाद् मति-माता सरसस्वती॥3६॥
विद्यास्युधि: क गम्भीर: क्ाउ्य॑ हीनप्छवो जनः।
तरज्ञोत्तोलितस्य स्थाः सहाया देवि में खदा॥३॥
तव प्रवाह प्रततं प्रवेगे शक्तोष्वगाढुं भवति स्वतः कश।
प्रसादये तत् करुणावति त्वां निष्णापयेमी तब हस्तधारम् ॥ ४॥
तब प्रसाद! खल देवमातः सौजन्यसौशील्यसुधासुधावैः ।
पापप्रमुक्तानथ पुण्ययुक्ताज् छुद्धान् पवित्नान् निपुणांस्तनोति॥ ५ ॥
तब भप्रभावान्ननु मानवानां तिय॑कत्व-मोक्षो मनुताविकासः ।
सदूवुद्धियोगः सुगतेः प्रकाशश्रारित्यशुद्धिः सुमतेबिलाख+ ॥ ६॥
त्वमेव शास्त्री भवसीह गुर्वची सद्देशनानां जगतां गुरूणाम्।
तीर्थड्डराणां श्रतिपाठकानां योगेश्वराणां भगवद्गतानाम॥ ७॥
त्वदेकनिष्ठस्थ ज्ु यत्न एव त्वद्धक्तिस्केमम विश्वबन्धों ।
संसारसर्वस्वविधानसारे स्यात् प्रीतयेः ते निगर्मा55गर्मेशे ॥ ८ ॥
त्वदीया प्रेरणा बीज त्वत्यसादः प्रवर्धकः |
पुष्पपन्ननिर्स देवि भवेदेतत्तवार्पितम ॥ ९ ॥
. सत्यमाच्रावकोकानां सत्यसारं च संगिराम्।
सर्वत्र सर्वदा चेव त्वद्धक्तानां तथार्पितम ॥ १०॥
विश्वबन्धुः
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