प्रभु के मार्ग में ज्ञान का प्रकाश | Prabhu Ke Marag Me Gyan Ka Prakash

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Prabhu Ke Marag Me Gyan Ka Prakash by ब्रह्मचारी शंकरदास जैन - Brahmachari Shankardas Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रमु के मार्ग में ज्ञान का प्रकाश हे कहां जा सकती | इस नियम में यदि फेरफार दो तो फिस् सामप्री में से क्या फल निःलेगा--इसका निर्णय न ही । या: फैसा दवा तो मनुए्यों का सम्पूर्ण पुम्पाथ रुक जाय। इसलिए कहा है कि प्रदति में दया नहीं पर इसमें म्याय अयश्य है ॥१० यटि कर्मो की यह सत्ता दया वाली और निवरल हृदय ये होता तो भनुष्या का करणामया द्वाय ध्यनि वो सुन कर भ्रस्येः समय म प्रशति का अपन नियम बटलन पड़त । इससे क्में का एक भा नियम निरियत न रहना और अ-म्रसस्‍्था बढ़ जाती सब अक्रार के फ्ल मनुष्य अपन कत्ता-य स पाता है । इस सह का टशन प्रमु महायार ने सारे निश्य को कराया है। इस अनु भव सिद्ध नियम मे उच्च स उच्च सत्ता भी दस्तक्षप करने के लिए समथ नहीं ! समार इस सत्य का जब भूल ज्ञाता है तन ऐश भद्दापुर्ष प्रकट द्वारर इसी सत्य मो फिर सममात हैं | कुटरत के इस सृष्टि म कृपा अथया प्रसाट को स्थान नहीं । का जिसी के सुत या दु स लेने में समर्थ नही | एक कौडी जैंसे छुद्र जीय २ लेकर यक्रय्ती राता व इंद्र आटि तक का जासुस या दुर होता है बह उनऊ याग्य या अयोग्य कतंत्य का हा फल है. उनका कमे ही भुस दु स का कारण है। ज्ञो जिससे योग्य नहीं उसको बह नहा मिलता इस सत्य का भूर कर सनु'्य पहुधा किसी कल्पित सत्ता के आगे ना अपन कत्तठर में से फत मिलना चाहिये उसके बल दूसरें फल कीआथन करता है। अपन लिय ग्रकति के दस अटल तियम को बदल;




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