अथर्ववेद का सुबोध भाष्य भाग ४ | Atharvved Ka Subodh Bhashya Bhaag 4

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Atharvved Ka Subodh Bhashya Bhaag 4  by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की अथवेबेदका सुबोध भाष्य एकादश काण्डस्‌ ब्रह्मोदन-सूक्त (१) अग्ने जाय॒स्वादिंतिनीधितेयं अंक्ौदुन पंचाति पृश्रकामा | सपुक्॒पयों भूठछतस्त ला मन्धन्तु प्रजयां सहेद ॥१॥ कृधुत धूम इंघण! सखायोउद्रौधाबिता वाचमच्छे | अग्नि पृंतनापाद् सुवीरों येन॑ देवा असंइन्त दस्पृत्‌ ॥२॥ अमप्नेड्जनिष्ठा महंते दीर्यायि अक्षोदनाय पक्तवे जातवेद। | सुप्रक्षुपयों भूठकव॒स्ते लवाजीजनअ॒स्थे र॒यिं सर्वेधीरं नि्य॑च्छ ॥३॥ 7 कई- है लप्ते | ९ जायस्द ) प्रकट हो ( ( इये नायिता भद्ठिति: ) यह प्रावेना करनेदाली क्दीए माठा € पुत्र कामा बक्षादर्त पचदि ) पुत्रोंडी इच्छा करती हुईं ज्ञान बढानेवाछा अन्न पकादी है। ( भूतक्ृुठः स॒प्त ऋषयः ) सू्ठोंडो बनानेवाड़े स्वत ऋषि ( इद् सवा प्रजया सड्ड मन्यस्दु )पहां तुसे प्रजाके साथ में यन करें ॥ १॥ है ( इृषणः सखायः ) वखवाव्‌ मित्रो ! ( घूम झुशुत ) घूर्वों करो, अप्रिश्नो प्रदीप करो । ( सत्ो घ--भविदा बार्ध अच्छ ) शोह न करनेवाढोंको रक्षा करनेवाठो भाषा बोछो। ( छय॑ अप्तिः प्ठनापाद सुवीरः ) यह अप्रि शत्रु सेनाओो पराजित कानैवाछा उत्तम वीर है। [ येन देवा: दस्यून्‌ असदन्द ) जिससे देवोनि दामु्भोकों परामित छिया॥२ ॥ा है भते! दे जाठेद! तू [ महते वीर्याव भजनिष्ठाः ] वदा पराकृम करनेके छिये प्रकट हुआ दे | [अक्व-भोदनाय पक्त- दे] और ज्ञानदर्घक लद्द पझानेके छिये प्रकट हुमा दे | ( मूठकृतः सस ऋषपः त्वा भक्ीजनत्‌ ) सूर्तोद्दी। उष्पादे करने- दाछ छाठ ऋषियेनि तुझे प्रकट किया हे 1 ( भस्य सर्वदोरं राय नि यच्छ ) इस भाताके ढिये सब प्रकारका धन प्रदान करा शत भादाय-माठा ठतम बोर पुत्र द्वोनेके लिये इंस्बरकी आ्रथेना करे, उसके लिये सुवोग्य झन्न पकादे। खगवके निर्माण करने- वाले सप्त ऋषि उस माठाओ सुप्रजा अदान करें 6 3 ॥ बह प्राप्त कर, यज्ञ कर, देह करनेवाली भाषा न बोल, तेजस्वी बन, जिससे समरविजयी ुपुश्न होगा, जो झथुओंकों दूर सगा देगा ॥ २ है ग तू बढ़ा पराहूम करनेके डिये दश्पन्न हुआ दे। उत्तम लक्ष द्वारा पाकवज्ञ करे सप्त ऋषियोकः संतोष करनेसे वे €ब प्रकरके वीर मादोंसे युक्त सपुत्र शवश्य अदान करेंगे और उत्तम घन देंगे ह ३ ॥




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