माधव विनोद | Madhav Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका | [ २३ रचना का कारण : ही वहादुरसिहू ने एक दिना सुख पाय। सोमनाथ! या ग्रन्थ की, भाषा देहु वनाय ॥१.२०॥ माधव श्ररु मालताय के प्रेम कथा कौ ख्याल । वरनत सो शशिनाथ कवि, हुकम पाय के हाल ॥१.२१॥ उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट प्रगट है कि लेखक की इच्छा भवभृति के मालती- माधव ताटक का अनुवाद करने की नहीं थी | अ्रवश्य उस प्रचलित कया को “ख्याल”! का रूप देकर भाषा मे लिखना था। अपने झ्राभयदाता बहादुरसिह के कहने से कवि ने उनकी इच्छा पूति की और 'माघव-विनोद' उसी का परिणाम है । आश्रयदाता बहादरसिंह : अपने ग्राश्नयदाता के सम्बन्ध में कवि सोमनाथ ने लिखा हैं कि--- २. ता भाऊ के प्रगटे हुव बदनसिंह वडभाल । त्रजमंडल को राज सब दीनो जाहि गुपाल ॥६॥ ३. बदनसिंह महाराज के सुन्दर पुत्र अनेक । जेठो सूरजमलल है पडित चारु विवेक ॥6॥ सोदर स्रजमलल को श्री परताप प्रचंड । महि मंडल में जगमगे जाकोी सुजस श्रखंड ॥1१०॥ ४. सिंह वहादुर नाम ताकौ पुत्र सुहावनों । सकल गुननि को धाम, मोहन मू रति कामसोौं ॥१४॥ इन्ही वहादुरसिंह को कवि ने अपना आश्रयदाता मानकर उनकी प्रशंसा में ५ छंद लिखे हैं जो यथाशेली अतिशयोक्ति से परिपूर्णा है। उनमें से एक यहां उद्धृत किया जाता है--- सुन्दर झ्ानन कौ अ्रवलोकि प्रफुल्लित अ्रम्बुज पुज विसारिय । जुद्ध मै पत्थ समान समत्थ गनेस ज्यों बुद्धि विलास विचारिये॥ ओर चली श्री वहादुरसिह के तेज करालनि सब्रु प्रजारिये । दान अरत्थ कहा कहिये जिहि हत्थनि पे कल्पद्र म वारिये ॥१७छ॥ रचना-काल : “ठारहसे अरु नव वरस, संवत आशिवन मास | शुक्ल त्रयोदशी भृगु दिनां भयो ग्रन्थ परकास ॥१०.१५६ संवत १८०६ अ्रथवा सन्‌ १७५२ ई० में इस ग्रंथ की रचना हुई। इस प्रकार य रचना अ्रमाचत कृत 'इंदर-सभा? ( २० का० १८५३ ई० ) से एकसौ वर्ष पहिले के, वना है ।




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