माधव विनोद | Madhav Vinod
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सोमनाथ चतुर्वेदी - Somnath Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका | [ २३
रचना का कारण :
ही वहादुरसिहू ने एक दिना सुख पाय।
सोमनाथ! या ग्रन्थ की, भाषा देहु वनाय ॥१.२०॥
माधव श्ररु मालताय के प्रेम कथा कौ ख्याल ।
वरनत सो शशिनाथ कवि, हुकम पाय के हाल ॥१.२१॥
उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट प्रगट है कि लेखक की इच्छा भवभृति के मालती-
माधव ताटक का अनुवाद करने की नहीं थी | अ्रवश्य उस प्रचलित कया को “ख्याल”!
का रूप देकर भाषा मे लिखना था। अपने झ्राभयदाता बहादुरसिह के कहने से कवि ने
उनकी इच्छा पूति की और 'माघव-विनोद' उसी का परिणाम है ।
आश्रयदाता बहादरसिंह : अपने ग्राश्नयदाता के सम्बन्ध में कवि सोमनाथ ने
लिखा हैं कि---
२. ता भाऊ के प्रगटे हुव बदनसिंह वडभाल ।
त्रजमंडल को राज सब दीनो जाहि गुपाल ॥६॥
३. बदनसिंह महाराज के सुन्दर पुत्र अनेक ।
जेठो सूरजमलल है पडित चारु विवेक ॥6॥
सोदर स्रजमलल को श्री परताप प्रचंड ।
महि मंडल में जगमगे जाकोी सुजस श्रखंड ॥1१०॥
४. सिंह वहादुर नाम ताकौ पुत्र सुहावनों ।
सकल गुननि को धाम, मोहन मू रति कामसोौं ॥१४॥
इन्ही वहादुरसिंह को कवि ने अपना आश्रयदाता मानकर उनकी प्रशंसा में
५ छंद लिखे हैं जो यथाशेली अतिशयोक्ति से परिपूर्णा है। उनमें से एक यहां उद्धृत
किया जाता है---
सुन्दर झ्ानन कौ अ्रवलोकि प्रफुल्लित अ्रम्बुज पुज विसारिय ।
जुद्ध मै पत्थ समान समत्थ गनेस ज्यों बुद्धि विलास विचारिये॥
ओर चली श्री वहादुरसिह के तेज करालनि सब्रु प्रजारिये ।
दान अरत्थ कहा कहिये जिहि हत्थनि पे कल्पद्र म वारिये ॥१७छ॥
रचना-काल :
“ठारहसे अरु नव वरस, संवत आशिवन मास |
शुक्ल त्रयोदशी भृगु दिनां भयो ग्रन्थ परकास ॥१०.१५६
संवत १८०६ अ्रथवा सन् १७५२ ई० में इस ग्रंथ की रचना हुई। इस प्रकार
य रचना अ्रमाचत कृत 'इंदर-सभा? ( २० का० १८५३ ई० ) से एकसौ वर्ष पहिले
के, वना है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...