ईशोपनिषद् | Ishopnishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) बष्टम पिद्धात्त-- “ धरद्धाको घारणा मेवम सिद्धान्त-- * अन्यमायय नहीं है दशम पिद्धात्त-- ' सत्तमका प्रभाव ' दोनो मार्गोकी तुरता १७३ 19३ (जॉ४ १७५ अध्यात्याधिष्ठित राज्यशासवक्े तत्त्म ( वैवश्तिक तथा सामाजिर ) १३७ ग्यारहवी शिद्वान्त-- * आ मषातकी लागोरी अप्योगति * (ड्ितीय प्रकष्ण ) दारइवो पिदाश- ' अ-रुण्यगशोलत्व तैरहवाँ.. विद्वान्त-- * अद्विवीयरव ! चौदहवी पिद्धास्त-- ' प्रगतिशील ! पंदहवका पिक्वान्दि-- ' बनृस्छसनोय व पोहहूवों प्िदाल-- * ब्राचोंन परुम्य शापर आधित सत्रहवों सिद्धास्त-- ' स्फूतियुका शात«दात * अठारहूवाँ पिंद्ाल-- ' भणाहों अनोक्िपण ' उप्यीमर्वां मिद्धास्त-- * मुप्निरिठित हवथये बीसवाँ विद्वाल-- ' वर्मोवों धारणा इवफीसर्वा मिद्वासंत -- ' स्थिर रहुतर दूसरोंशा सघालत ! + शातवां हिद्धास्त-- * दूर और पाम समान / तेशसवाँ ध्िद्धास्त-- ' परकल्लरावरुबित्व चौदीसको सिदान्त-- * एशस्म-प्रत्ययं ( तृतीय प्रकरण ) पचदीसर्शं धिदाल-- * घारोरिक दोपेति विभ्द ने हों! म्दोसवाँ धिद्धान्त-- * पवित्रता रहे सताईशर्श सिद्धान्त--- * जानी और रुतुत्ववान्‌ राजपुरुष ! अद्गारसर्वा पिंद्वात्त-- ' यदायोए स्वायों शर्ये व्यवस्था ' रा ६ चदर्थ ध्वरण ) विद्याश्षत्र ( ज्िक्षा विशांग ) १८० १८१ श्टर्‌ श्थ्व १८३ श्टा हटाई १८५ १८६ १८६ १८७ १८७ 1८८ १८९ १९० १९१ १९२ ह९३ (९४




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