ईशोपनिषद् | Ishopnishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
बष्टम पिद्धात्त-- “ धरद्धाको घारणा
मेवम सिद्धान्त-- * अन्यमायय नहीं है
दशम पिद्धात्त-- ' सत्तमका प्रभाव '
दोनो मार्गोकी तुरता
१७३
19३
(जॉ४
१७५
अध्यात्याधिष्ठित राज्यशासवक्े तत्त्म ( वैवश्तिक तथा सामाजिर ) १३७
ग्यारहवी शिद्वान्त-- * आ मषातकी लागोरी अप्योगति *
(ड्ितीय प्रकष्ण )
दारइवो पिदाश- ' अ-रुण्यगशोलत्व
तैरहवाँ.. विद्वान्त-- * अद्विवीयरव !
चौदहवी पिद्धास्त-- ' प्रगतिशील !
पंदहवका पिक्वान्दि-- ' बनृस्छसनोय व
पोहहूवों प्िदाल-- * ब्राचोंन परुम्य शापर आधित
सत्रहवों सिद्धास्त-- ' स्फूतियुका शात«दात *
अठारहूवाँ पिंद्ाल-- ' भणाहों अनोक्िपण '
उप्यीमर्वां मिद्धास्त-- * मुप्निरिठित हवथये
बीसवाँ विद्वाल-- ' वर्मोवों धारणा
इवफीसर्वा मिद्वासंत -- ' स्थिर रहुतर दूसरोंशा सघालत !
+ शातवां हिद्धास्त-- * दूर और पाम समान /
तेशसवाँ ध्िद्धास्त-- ' परकल्लरावरुबित्व
चौदीसको सिदान्त-- * एशस्म-प्रत्ययं
( तृतीय प्रकरण )
पचदीसर्शं धिदाल-- * घारोरिक दोपेति विभ्द ने हों!
म्दोसवाँ धिद्धान्त-- * पवित्रता रहे
सताईशर्श सिद्धान्त--- * जानी और रुतुत्ववान् राजपुरुष !
अद्गारसर्वा पिंद्वात्त-- ' यदायोए स्वायों शर्ये व्यवस्था '
रा ६ चदर्थ ध्वरण )
विद्याश्षत्र ( ज्िक्षा विशांग )
१८०
१८१
श्टर्
श्थ्व
१८३
श्टा
हटाई
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ह९३
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