अथर्ववेदः [ विंश काण्डम् ] | Atharvaveda [ Vinsha Kandam ]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
724
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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९--हका विवरण अयर्धवेद भाण्य कायड २०॥
सूक्त। सूक्त के प्रथम पद् देवता ,
३१ ता घज़ियां मन्दिनं | इन्द्र ेु
३२ | ञ्रा रोदसी इर्य इन्ठ़
३३ | श्रप्छु धूतस्य दरिवः | इन्द्र
दें | यो ज्ञात एच मथमा | इन्द्र
रे५ | अस्मा इदु प्रतवसे | इन्द्र
३६ | य पक इतदु घच्य | इन्द्र
३७ | यस्तिग्मश्टड्ो इन्द्र...
रे | आयाहि खुधुमा | इन्द्र
रह | इन्द्र घो विश्वतसुपरि | इन्द्र
3० | इन््रेश सं हि इच्चसे | मरुत आदि
४१ | इच्ध्रो दधीचों अख चन्द्र
४२ | घाथमष्ठापदीमह घ्न्द्व
है) | सिन्चि घिश्वां अप | इल्हू
४४ | प्र सम्नाजं चर्पणी श्न्द्र
४४ | अयमु ते समतलि इन्द्र.
४६ | घणेतारं वस्यो सनक
४४ , तमरिन्द्र वाजयामसि इन्द्र
४५ | अभि त्वा वर्चसा इन्क्र आदि-
४६ | यच्छक्ता चाचमा इक
४० | फाश्नव्यों झनसीनां -| इस्ट
५१ | अ्रभिभ्र वा छुराध | इन्द्र
पृ | पयं घ त्वा छतावन्त | इच्द्र
ल् चिश्याः पृतनां घ््द्र
४१ | समिन्द्रं जोहबीमि* | इन्द्र
४९ | इन्द्रो मदाय चाचूधे इन्द्र. -
पूछ छुकूपरत्लुमूतये ड
५८ | भ्रायन्त इच सूर्य इन्ट आदि
'६ | बेडुत्ये अधुमत्तमा - छठ.
६० | पा हासि बीर: इन्द्र. *
' है | सं ते मद गुणीमसि ष्न्द्र _
दे | वयमु स्वामपूष्थे - | इच्द्धू
रे श्माचुक भुबना श्न्द्र आदि
उपदेश
पुरुपार्थे-
राजा के कर्तव्य
राजा के धर्म
परमेश्वर गुण
सभापति
महुष्य ऋतंब्य
राजां और प्रज्ञा
राजा और प्रधा
परमेश्वर उपासना
राजा और प्रज्ञा
राजा के कर्तव्य
मज्ुष्य कतंव्य _
शाज्ञा के धम्मे
राजा और प्रज्ञा
सभापति कत्ंव्य
/>क >कव्कक :
लेनापनि लक्षण
राजा प्रज्ञा आदि
परमात्मा और जीचात्मा
इंश्वर उपासना
परमेश्वर महिमा 5
परमेश्वर उपासना
परमेश्वर उपासना
सेनापतति
रांजा और प्रज्ञा
राजा के कर्त्य
सभापति लक्षण
मल्ुष्य ऋतंब्य
इंश्वर चिपय
ईश्वर, राज्ञा, भन्ञा
-मलजुध्य कतंब्य
परमेश्वर गुण
राजा, प्रजा आदि
ताज +++-_......2 जा आदि
री
छुन्द
जगती आदि
त्िए्टप् झ्ांदि
निष्टुए आदि
ऋिष्टुप् आदि
' ब्रिष्टुप आदि
पकक्ति आरि
भिष्दुप् आदि
गायत्री आदि
' गायत्री आदि
गायजी श्रादि
गांयत्री
शायकप्रो
गायत्री
“गायत्री आदि
गायनी आदि
गायत्री
गायत्री आदि
गायत्री आदि
गायत्री आदि
अन॒ष्दुप् आदि.
बुद्दती आदि
ब्दनी
घद्दती
ज्ञगती आदि -
जगती आदि
पडाक्तिः आदि
गायत्री आदि
“ वृदती आदि
बहती आदि
गायत्रो आदि
डष्णिक् आदि
उष्यिक् आदि
पहक्ति शादि
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