अथर्ववेदः [ विंश काण्डम् ] | Atharvaveda [ Vinsha Kandam ]

Atharvaveda [ Vinsha Kandam ] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
_ ) | ब्‌ ९--हका विवरण अयर्धवेद भाण्य कायड २०॥ सूक्त। सूक्त के प्रथम पद्‌ देवता , ३१ ता घज़ियां मन्दिनं | इन्द्र ेु ३२ | ञ्रा रोदसी इर्य इन्ठ़ ३३ | श्रप्छु धूतस्य दरिवः | इन्द्र दें | यो ज्ञात एच मथमा | इन्द्र रे५ | अस्मा इदु प्रतवसे | इन्द्र ३६ | य पक इतदु घच्य | इन्द्र ३७ | यस्तिग्मश्टड्ो इन्द्र... रे | आयाहि खुधुमा | इन्द्र रह | इन्द्र घो विश्वतसुपरि | इन्द्र 3० | इन््रेश सं हि इच्चसे | मरुत आदि ४१ | इच्ध्रो दधीचों अख चन्द्र ४२ | घाथमष्ठापदीमह घ्न्द्व है) | सिन्चि घिश्वां अप | इल्हू ४४ | प्र सम्नाजं चर्पणी श्न्द्र ४४ | अयमु ते समतलि इन्द्र. ४६ | घणेतारं वस्यो सनक ४४ , तमरिन्द्र वाजयामसि इन्द्र ४५ | अभि त्वा वर्चसा इन्क्र आदि- ४६ | यच्छक्ता चाचमा इक ४० | फाश्नव्यों झनसीनां -| इस्ट ५१ | अ्रभिभ्र वा छुराध | इन्द्र पृ | पयं घ त्वा छतावन्त | इच्द्र ल्‍ चिश्याः पृतनां घ््द्र ४१ | समिन्द्रं जोहबीमि* | इन्द्र ४९ | इन्द्रो मदाय चाचूधे इन्द्र. - पूछ छुकूपरत्लुमूतये ड ५८ | भ्रायन्त इच सूर्य इन्ट आदि '६ | बेडुत्ये अधुमत्तमा - छठ. ६० | पा हासि बीर: इन्द्र. * ' है | सं ते मद गुणीमसि ष्न्द्र _ दे | वयमु स्वामपूष्थे - | इच्द्धू रे श्माचुक भुबना श्न्द्र आदि उपदेश पुरुपार्थे- राजा के कर्तव्य राजा के धर्म परमेश्वर गुण सभापति महुष्य ऋतंब्य राजां और प्रज्ञा राजा और प्रधा परमेश्वर उपासना राजा और प्रज्ञा राजा के कर्तव्य मज्ुष्य कतंव्य _ शाज्ञा के धम्मे राजा और प्रज्ञा सभापति कत्ंव्य />क >कव्कक : लेनापनि लक्षण राजा प्रज्ञा आदि परमात्मा और जीचात्मा इंश्वर उपासना परमेश्वर महिमा 5 परमेश्वर उपासना परमेश्वर उपासना सेनापतति रांजा और प्रज्ञा राजा के कर्त्य सभापति लक्षण मल्ुष्य ऋतंब्य इंश्वर चिपय ईश्वर, राज्ञा, भन्ञा -मलजुध्य कतंब्य परमेश्वर गुण राजा, प्रजा आदि ताज +++-_......2 जा आदि री छुन्द जगती आदि त्िए्टप्‌ झ्ांदि निष्टुए आदि ऋिष्टुप्‌ आदि ' ब्रिष्टुप आदि पकक्ति आरि भिष्दुप्‌ आदि गायत्री आदि ' गायत्री आदि गायजी श्रादि गांयत्री शायकप्रो गायत्री “गायत्री आदि गायनी आदि गायत्री गायत्री आदि गायत्री आदि गायत्री आदि अन॒ष्दुप्‌ आदि. बुद्दती आदि ब्दनी घद्दती ज्ञगती आदि - जगती आदि पडाक्तिः आदि गायत्री आदि “ वृदती आदि बहती आदि गायत्रो आदि डष्णिक्‌ आदि उष्यिक्‌ आदि पहक्ति शादि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now