भारतीय सामाजिक संस्थाएँ | Bharatiy Samajik Sansthaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नातियाद तथा जाति का भविष्य 17
(1) जातिवाद को समाप्त करने ने लिए डॉ घुरिये का सुझाव है कि
अआतर्जातीय वियाहों को प्रौत्ताहुन दिया जाना चाहिए। बतर्जातीय विवाह उसी समय
प्रचलित हू सकते हैं जब एस विवाहो वे लिए देश मे उपयुयत् वातावरण तैमार किया
बाय ! वह तभी हा समता है जब झिक्षा के माध्यम से लागो वी मनोवृत्तियां मे
परिवतन लागा जाय तथा विभिन्न जातियो के सडवे लडकियों को एक-दूसरे के निकट
आने फा अवसर दिया जाय । डॉ घुरिय ने बतलाया रे विः वास्तव में यदि जाति-
प्रथा और जातिवाद का अत्यधिय आघात पहुचान वाला बोई तत्व है तो बह है
अचर्जातीय विवाहो का प्रोत्माहूत। आवश्यकता इस वात वी है वि अतर्जातीय
विवाह बरन बाला या सुविधाओं ये रूप में प्रणा प्रदाता बी जाय ।
(2) पो एच प्रभु की सायता है कि उचित झिक्षा के द्वारा व्यवहार के
आ“तरिफ स्रोतों पर प्रभाव डालदर जातियाद यो दूर क्षिया जा सफ्ता है। शिक्षा
इस प्रकार वी हानी चाहिए कि बच्चो में जाति पाँति सम्बबी भेदभाव उत्पन्न ही
नहीं हो, धम निरपक्षता वो बढ़ाया मिले और जातिवाद वे” विरोध म स्वस्थ-जनमत
बा तिमाण हां, शिक्षा और सामाजिक सम्पव के द्वारा एक जातीय समूह की दूसरे
समूह के' प्रति क्लुपित घारणाआ का बदला जा सकता है । लागी बी मतावत्तिया को
बदलते बे” लिए च्लाचभों का प्रयोग किया जा सकता है ।
(3) डॉ राय के अनुसार बेफ्ल्पिफ समूहों के मिर्माण से जातिवाद की
समस्या को हल क्रिया जा सकता है। यहाँ लोग जानीय समूहों दे माध्यम से ही
अपनी सामूहित' प्रवृत्तिया को व्यकत करत हैं । यदि उः वैवल्पिक' समूह उपलब्ध हो
ता वे इनकी तदस्पाया प्राप्त कर इसो माध्यम से सामूहिन मनावृत्तियो को व्यकत तथा
अपनी विविध त्ियाओं या सगठित कर सकेंगे | सामाजिव गौर सास्द्व तिब' सम्ठनो वे
निर्माण से विभित जातिया क व्यवितियां वा एक दूसरे वे निवट आने और एक दूसरे
को समझने का मौका मिल सवगा | ऐसी स्थिति मे उतमे समानता और वा वुत्व की
भावना पतपेगी और जातिवाद दूर हा सकंया । यहाँ यह स्ावबानी रखना अत्यात
आवश्यक है कि कही इन संगठनों में मी जातिवात्ति प्रवेश न कर जाय ।
(4) श्रीमती इरावतो कयें ने सुझाव दिया है कि जातिवाद से छुटकारा प्राप्त
क्रो के लिए विभिन जातियों से आथिक एवं सास्हृतिकः समानता साना आवश्यक
है । इस समानता के आने पर लोग जपनी ही जाति के राकुचित दायरे म सीमित
नही रहंगे और उह विभिनर जाति वे लोगां के साथ सम्बाध स्थापित करने मे
सहायता सिलेगी ।
(5) जातिवाद को समाप्त करने तथा अर्धृश्यता निवारण हेतु सितम्बर
1955 में दिल्ली मे जायोजित सेमियार में सुझाव दिया गया कि जाति शब्द का
कम से कम प्रयोग किया जाय । सेमिनार मे बतलाया गया कि सरकार के द्वारा यह
प्रयत्न किया जाना चाद्विए कि प्रायना पत्रो, स्कूल के रजिस्टरी धमझालाओ तथा
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