व्यक्ति और राज | Vayakti Aur Raj

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Vayakti Aur Raj by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपयद्रुवव श्र हुए तो उनकी इच्छा पूरी द्ोकर रहती दै। पर इससे केबल पक विशेष बला दल जाती है, मेघ घिरे ही रहते हैं। यदि प्रश्नकी सुलभाना है तो उसपर सैद्धान्तिक रुपसे घिचाश करना होगा । किसी एक राजक किसी एक व्यक्षिका प्रश्न नहीं हैं, मे किसो अवसर पिशेपके कर्त-या कर्तव्यका निरयंय करना है। यधासस्पव देशकालसे ऊपर छटबर यह देखना है हि राज़ ओऔर ध्यक्तिमे केसा सम्प-घ होना चाहिये जो उमयके लिये प्रेयस्कर दो | मैं पहिले भी कद चुका हैँ कि आज इस अश्तकी ओर ध्याम देना पद्चिलेसी अ्रपेज्षा अधिक आवशयर द्वो गया हैं क्योंकि समस्या पद्दितेसले जटिछ द्वो गयी है। आजसे दो सो चर्ष पदिले, भारतके दशी रजवा्ों त्कर्मे भी, बात बहुत सीधी थी | प्राद्यनक्ालके विढानेने राज़के सम्पन्धर्म जो कुछ छानबीन की थी चंद पिस्खुत दवा ययी थी। राजका किसीकों प्याल भी नहीं था। आ कुछ था चहद राजा था। फ्रासके बादशाद चंद्दें लुईने मिस बातका स्पष्ठ शादमें कहा था (ल एता स स्या-राज' मै राज हैं) उसे स+ दी मानते थे | राज़की थात भली लगे या उरी पर उसक द्वायमें शक्ति थी अत्त उसका आपध्रा मा य थी । यदि डलस कुदफर यल्चा हुआ शोर टृसरा राजा या राजपश बैठाया गया ता चह्द भी उतना दी माय दो गया। देश ओर विदेशमें सारे जिम्मेदारी राज़ाकी थी। प्रजा यश अपपशकी भागा नहीं थी, उसका कोई दायित्व नहीं था।




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