सन्धिचन्द्रिका | Sandhi Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री रामचन्द्र झा - Shri Ramchandra Jha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ताकथयत
संस्कृत भाषा विश्वकी प्रायीनतम भाषाओं में अन्यतम है! भारतीय
पु रातत्वके विषयमें पूर्ण और यथाय ज्ञानके लिए संस्कृत ही एकमात्र अनन्य
साधारण साधन है। बहुत ही संतोष श्रोर प्रमोदका विषय है कि संस्कृत शिक्षा-
पद्धतिके युधारकी ओर भी स्वतन्त्र भारतकी सरकारका ध्यान आक्ृप्ट हुआ है
और प्रनुदित हो रहा है। “आवश्यकता आविष्कारकी जननी होती है” अत
राष्ट्रभाषा हिन्दों स्वीक्षत होनेके पश्चात् जब संस्कृत अनिवाय रूपसे पढलेको
यावश्यकता हो गयी है तब विद्वानोंने भी विविव इति कत्तंव्य्तामय स्वत्प
श्रममें अधिक लामप्रद प्रन्थोंके प्रणयनमें यथेष्ट ध्याव दिया है। प्रस्तुत पुस्तिका
मी उसीका हेतुमत है। अगर अल्प वयस्क बालकों को इससे कुछ भी लाभ
पहुँचा तो में अपने श्रमको सफल समझूगा ।
इस प्ृस्तकके प्रणयनमें मित्रवर श्री पं० शोमित मिश्र जी न््यायव्याकरणा
चायने विशेष सहायता प्रदान की है तदर्थ मैं उनका बहुत ही इतज्ञ हैँ । साथ
ही साथ जिन ग्रंथों से मुझे भ्रांशिक सहायता मिली है मैं उन ग्रन्थकारोंका भी
विशेष आमारी हूं ।
अन्तमें इध पुस्तकके प्रकाशक 'चौरूम्बा संस्कृत पुस्तकालय के अध्यक्ष
श्रेष्ठिवर स्व० बाबू हरिदासजी गुप्त के सुपुत्र बाबू जयकृष्णदासजी गुप्तका
आमार प्रदक्षित करना भी मेरा पुनीत कत्तंव्य है । अँग्रेजके शासनकालमें जब
संस्कृत मृत भाषा कही जा रही थी, उम्र समय भी आपका उत्साह कम नहीं
था | संस्कृतके उत्थानके लिये ६२ वर्षोसे निरन्तर आप मगिरथ प्रयत्न कर
रहे हैं। अपने ही हाथों से एक सहस़्से अधिक प्राचीनसे प्राचीन पस्कृत
ग्रन्थोंको प्रकाशित कर आपने भगवती सुरभारतीकी जो सेवा की है वह सराह-
नीय है और इसके लिए स्वतंत्र भारत आपका कतज्ञ है ।
श्रावणी झूला विनीत
वि० सं० २५०६ श्री रामचल्ध झा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...