जातकाभरण | Jatakabharan
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
395
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नारायणप्रसाद मुकुन्दराम - Narayanaprasad Mukundaram
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)े भूमिका.
“अनेक धन्यवाद हैं उस पूर्ण जह्म परमात्माको (कि जिसने अपनी अनुपम दयासे इस जगवमें
1 समस्त प्राणियोंके उपकारा्थ बेदविद्याकी उत्पन् किया, सृष्टिकर्ती परमेश्वतने जिस समय वेदके चार
भाग किये उसी समय छः अंग अर्थात् १ शिक्षा, २कब्प, हे व्याकरण, 9 निरुक्त, ५उप-
निषद और ६ ज्योतिष नाम वेदके छः झंग प्रगठ किये हैं, तहां व्याकरणकों बेदका मुख
ज्योतिषको नेत्र, निरक्तरों कण, कल्पक्ो हस्त, शिक्षाकों नासिका और छन्दुको चरण क्मना
( कियाहै; जैसा कि सिद्धान्त शिरोमणिर्मे लिखा है--
शब्दशा्ख मुर्ख ज्योतिपश्श्षपी, ओोन्रम॒क्ते निरुक्ते च कल्प करो!
सा तु शिक्षाउस्प वेदस्प सा, नासिका पादपनद्धय छनन््द आयेैजंबैः ॥श॥1
परंतु इन अंगेंमें मुख्य नेत्रही हैं; क्योंकि नेत्रहीन होनेसे मनुष्य किसी शाख्कामी अवछो-
कन नहीं करसकता, फहा है'कि-
;* पयुतो5पीतरेः क्णनासादिभिश्क्षुपगिन हीतों न किंचित्करः ॥ *
/ अर्थे-कर्ण, नासिका आदियंगोंते युक्त मनुष्यमी नेत्रहीन होनेते कुछभी नहीं कर-
कता है।
| सो ऐसा ज्योतिषशाल्षरूपी सनकी जिसके द्वारा समूर्ण प्राणियोंके पूर्वजन्म इदजन्म-पर-
जन्मका इत्तान्त ( सुख दुःख जादि ) भीमांति जानाजाता है. ज्योतिपविद्याऊ़े सव अवयबेमिं
एक होराशाख्रही अद्वितीय रन है, जिसने होराशाल्लरूपी अंजनको नेत्रोंमें दिया है, वह
जगत जिकाठदर्शी भर देवतार्मोके समान पूजनीय होता है,
उस होराशाम्ब्रफे अनेक ग्रन्थ हैं जैसे-पाराशरहोरा, आंभुद्दोराप्रऊाश, द्ोरास्न, होराणेव,
होगमार्तण्ड, जैमिनिसूत्र, टोमशहोरा,जावऊ पारिजात, बृटजञातक, मलुष्यनातक, माबकुलूइछ,
जतकालंकार, जातकामरण,इ यादि,इन समस्त अन्योमिं जातकामरणम्रन्थ गति सरछ है और सर
द्ोनेपर भी साधारण पण्डितेंकी समझमें न जानेके कारण हमने इसकी भाषाठीका अतिसुगम किया,
“ सो बह मुख्ापुरनिवासी शास्री गजानन शंभु सावके इन्होंने अच्छीतरहसे सुधाएकर कठिन
ब्िपरयपर, वृदजातन्त,प्यालूजागारिजात, चादि ग्रंथोपे, सिपणी, देखा, यह प्रेल्च कांड, किए; है
+ ऐसे इस अमूल्य प्रन्थकों हमने सबोविकारोके साथ पंडित हरिपसाद भागीरथजञीको समर्पण
1 है; कि जिनकी छपासे यह सर्वाग सुंदर मुद्नित होकर पण्डितोका बहुत कुछ ठपकार
1, यह रथ औौरमी एक दो जगह छप्गया है परंतु उनकी इसफे साथ समाठोचना करके
1 उमताकी पर्राक्षा कर उेना, यहां सह सदसद्वियेकी पण्टितेसि सब्रिनय विनं|ति है,
डर समस्त पण्डितोंके प्रभी-
नारायणप्रसाद मुकुन्दरामज़ी
ससकृत पुस्तकालयाध्यक्ष
बोसयरेली भार
ड़ छस्रमीपुर ( अबध )
के हक स्वूनला-
User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-22 15:48:10