वीरवर्धमानचरितम | Viravardhamanacharitam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Viravardhamanacharitam by पं. हीरालाल जैन सिद्धान्त शास्त्री - Pt. Hiralal Jain Siddhant Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अस्तावना १७ अथेन्द्रभूतिरेवाद्यों वायुभूत्याग्निभूतिकौ । सुधममौय॑मौण्डाख्यपृत्रमैत्रेयसज्ञका 1२०६॥ अकम्यनोब्न्धवेलाख्य प्रभासोधई्मी सुराचिता 1 एकादश चतुर्ज्ञाना समते स्युगणाधिपा ॥1२०७॥ ( प्रस्तुत चरित्र, अधि १९ ) पाठक यदि दोनो पाठोको ध्यानसे देखेंगे तो उन्हें यह बात स्पष्ट ज्ञात होगी कि सकलकीतिके सम्मुख उत्तरपुराणके उक्त इलोक उपस्थित थे और उन्होने गणधरोके नाम साधारण-सा परिवर्तन कर ज्योके त्यो रख दिये है । भारतीय ज्ञानपीठसे मुद्रित उत्तरपुराणमे अकम्पनो&न्धवेलाख्य / पीठपर टिप्पणी नम्बर देकर अकम्पनो$न्धचेलारय इति क्वचित्‌' के रूपमे पाठान्तर दिया गया है । यदि इस पाठके स्थानपर 'अकम्पनो- अचलञ्नाता' इस पाठकी कल्पना कर ली जाये तो अन्धवेलके स्थानपर अचलअभ्राता नाम सहजमे प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार 'मोण्डाख्यपुत्र' पाठके स्थानप्र मौण्डार्यव्यक्तः पाठकी कल्पना कर ली जाये, तो पत्र” इस असगत-से नामके स्थानपर दवेताम्बर-परम्परागत आयब्यक्ता यह नाम भी सहजमें उपलब्ध हो जाता है। और उक्त कल्पनाके करनेमे कोई असगति भी नही है, प्रत्युत श्वेताम्बर परम्पराके साथ सगति ठीक बैठ जाती है। श्वेताम्बर परम्परामे उक्त ग्यारहो ही गणधरोका विस्तृत परिचय-विवरण उपलब्ध है, जबकि दिगम्बर परम्परामे केवल उक्त नामोल्लेखके अतिरिक्त कुछ भी परिचय प्राप्त नही है । यहाँपर श्वेताम्बर शास्त्रोके आधारपर सर्व गणधरोका सक्षिप्त परिचय दिया जाता है, जिससे कि पाठकोको उनके विषयमे कुछ जानकारी मिल सकेगी । १ इन्द्रभूति--गौतमगोत्री ब्राह्मण थे । ये मगध देशके अन्तगत गोबर' ग्रामके निवासी थे । इनकी माताका नाम पृथ्वी और पिताका नाम वसुभूति था। ये वेद-वेदागके पाठी और अपने समयके सबसे बडे वैदिक विद्वान थे। इनको द्रष्टव्यो रेड्यमात्मा' इत्यादि वेदमन्त्रमें आये आत्मा के विषयमे ही सन्देह था । इन्द्रके द्वारा पूछे गये काव्यार्थंमों जब ये न बता सके, तब ये उसके साथ भगवान्‌ महावीरके पास पहुँचें और जीव-विषयक अपनी शकाका समुचित समाधान पाकर अपने ५०० शिष्योके साथ उनके शिष्य बन गये। दीक्षाके समय इनकी अवस्था ५० वर्षकी थी। ये ३० वर्ष तक भगवानके प्रधान गणधर रहे । जिस दिन भगवान्‌ मोक्ष पधारे, उसी दिन इनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई। १२ वर्ष तक केवली पर्यायमे रहकर इन्होने निर्वाण प्राप्त किया । २ अग्तिभूति--ये इन्द्रभूतिके सगे मझले भाई थे। इनको कमके विषयमे शका थी। ये भी इन्द्रभूति- के साथ गये थे और भगवान्‌के द्वारा अपनी शकाका सयुक्तिक समाधान पाकर अपने ५०० शिष्योके साथ दीक्षित हो गये । उस समय इनकी अवस्था ४६ वर्षकी थी । १२ वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर केवलज्ञान प्राप्त किया । १६ वष तक केवलीपर्यायमे रहकर ये भगवान्‌के जीवन-कालमे ही मोक्ष पधारे। ३ वायुभूति--ये इन्द्रभूतिके सबसे छोटे सगे भाई थे। इनको जीव और शरीरके विषयमे शका थी। ये भी इन्द्रभूतिके साथ भगवान्‌के पास गये थे और भगवान्से अपनी शकाका समाधान पाकर ५०० शिष्योके साथ दीक्षित होकर गणधर बने । दीक्षाके समय इनकी अवस्था ४२ वर्षकी थी । १० वष तक गणधरके पदपर रहकर, इन्होने केवलज्ञान प्राप्त किया और १८ वर्ष तक केवलीपर्यायमे रहकर भगवान्‌ महावी रके निर्वाणसे दो वष पूरे ही इन्होने मोक्ष प्राप्त किया । ७ आर्य॑व्यक्त--यें कोल्लागसन्निवेशके भारद्वाजगोन्नीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम वारुणी और, पिताका नाम धनमित्र था। ये पृथ्वी आदि पाँच भूतोसे जीवकी उत्पत्ति मानते थे। इन्हे जीवकी स्वतन्त्र सत्तामे शका थी | भगवान्‌ महावीरसे अपतती शकाका समाधान पाकर इन्होने अपने ५०० दिष्योके साथ दीक्षा ले ली। उस समय इनकी अवस्था ५० वर्षकी थी । १२ वर्ष तक गणधर पदपर रहकर केवल- ज्ञान प्राप्त किया और १८ वर्ष तक केवलीपर्यायमे रहकर भगवानके जीवनकालमे ही मोक्ष पधारे। ड




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now