अथर्ववेदके सुभाषित | Athrvavedke Subhashit

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Athrvved Bhag-3 Kand 7 Se 10 Tak by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(8) सूर्धाममस्प संसीस्पाथणों हृदय ल पत्‌ , मस्तिष्का दृष्वें! प्रेर्षत पथमालोषषि शीर्घतः (१ ३ ३९ )-- सिर और हृदककों घोगी श्लीता हे छोर मक्षुक रूपर प्राजको अतः है। लड़ा भ्रयर्षण। शिर! देवकीश+ समुष्सितः (१ ।९। ३७ )-- बह अशर्षाका सिर देबोंका खबावा घुर पिप है! सबां विश!ः पुरुष भा बसूथ () ११८ )-- छथ दिधालोंए बच पुरुष हे । पो बै ता प्रद्यणों पेद भसृतेम्ाचुतां पुर॑तस्मै श्र स ब्राह्माब्य अट्छू! पार्य प्रजां ददु। (1 1२११) +-+ बयठसे इप अक्षकों शगरीकों थ्रो बाचता है डसको जद नो अन्य दैव इस्सु बाल ( दीर्षाणु ) भौर सुप्रजा देते हैं । शव त चक्ुअद्धाति म प्राणो सरसः पुरा पुरं पो श्रष्णो बेद घस्पा। पुरुष टचयते (१ ९३ ) -- ओ अक्षढी इस श्गरीढो श्रामदा है शसको व णांक् थोर थ प्रॉल बृद्धावस्थाके पूरं छोड़ते हैं। भप्ठा चक्रा शवद्वाएा देवाबा प्रयोप्या स्पा हिर अयया कोशाः स्‍्वपों स्पोतिषाबुत। (१ ३६१) >+ भार चक जोर थौ हार विशवमें हे ऐसी बह देदोंड्री लपरी हे इबध्धयें सुदणढ। खजाना तेडफे सता हुआ स्वसे दो है | शस्मिन्‌ दिरण्यये कोदे भयरे जिप्रतिप्ठिते सस्मिस्‌ पपक्षमारमस्वत्‌ तप अद्यविदों चिदुः ( १ ९ ६९ )-- रन तेजस्थी हरकतें ढोल लाचारोंणे रहे श्वाजमें शो लरपादाद्‌ भूजबीब देव हे इसको बक्षज्ञाभी लावत है | प्रधाजमानां इरिणी यधासा सपरीक्षृतां पूरं द्विर क्यों प्र्मा विपेशापरासिताम्‌ (१ ।१६३ ) >ै ते अस्थी बदाये बि?ती सबका हल कानेबाको सुषर्थअ्षय जपराजित भगरीमैं शक्षा बदेष करता दे । इज सुमारितोंयें हमसे भी छोटे इुकहे पुम।बितके समम्य डपथोगर् काने था सकते हें इलिबे-- प्रद्चणा चाध्पामा-- बद्जाण्से बृड्ि ब्रप्त काते हैं । बहानप्रियाद्‌- हझ्षदों खोजे । [ सथर्धबेइके ७ स॑ ६० तक ऋचछो असझतरे देजा विवेदु:-- देदमंत्रके अक्षर५ं देव रहते हैं । पर्क सत-- रुक धत हे । अ्रझ्ञ भोषिय झापोति- शाम देदके विववानको मा दोठ है । जइय बेवां अनु ध्विपति-- रक्ष देघोंकि छाव रइता है । पिरः देवकोइा!-- प्रिर देदोंक! खजाना दे । सर्वा दिश्यः पुरपा-- सब दिश्षाओम प्ररुष दे । जवहारा देवार्शा पूः-- नौ द्वारोंबारी देबॉकी बगरी है। पुर दिरिष्यर्पी ऋक्षा विधेदा-- सुर्णमण मतों तका प्रथिए्ट होता है । इस तरह पूर्वोक्त बडे सुसावितोंश्े पेसे जमेक कटे छोटे प्चुघपावित तैपार होते हैं। ये धवक्तिश' मना ढबश अरे था सन किये का ककते हैँ, जोर देखा करनेसे करनेबाकों छोर झुगवेषाक्षों क्रो बडा काम हो सकता है । ईस्‍्बर प्रपये पथां जडमिष्ट पूषा प्रषये विवः प्रपये पृथिष्पा। ( ७) ।३ )-- घुछोकके जन्तरिक्षके, लौर धचि बीके सा्यर्ते सबका पोरणकर्ता कर ब्रकर होता दे | छम्ते झ्सि प्रियतमे सघस्थे भा चल पपा ल अरति प्रदालय्‌-- दोणों लत्थेत जिन स्थावधें उनको टीक 6र६ ध्ायता हुआ बह इंशव विचरता है। पूंवेसा भादा झनु बेद सर्वाः-- (०॥ ।१)- सक्‍का पोषणकर्ता ईश्वर सच दिक्षा हप दि छाओों को जाकता है। सो मर्मों लमयतमेन मेपत्‌-- बह इम प़बछो वि बठाके मारे के अस्ठा है। स्वस्तिवा भ्रपृक्चि! सर्वेबीरों:प्रयुधकन, पृर एतु प्रसाधम्‌-- षह प्रमु श्चका कक्ष्याल कावेवाका, देजस्थी प्रबप्े लबिक् बौर बस।भ व करत्य हुआ इमाय भैठा हो । भमि स्पें देबे सबितारं भोव्यो। कषिकतुम्‌ | श्र्नामि सस्पक्त्य रस्मघों अमि प्रिय मशिम्‌ (७४१७!) --मस्दक़ी (क्ष। करनेबारे पक्के कर खूकोकके शत्पावुक ज्ञाजो कौर झंस कर्मर्ता पत्वमवेरक रत्व चारक सवमत करने बोगन और दि अपन देबको मैं दृजा करबा हू।




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