परमात्मप्रकाश | Paramatmaprakash

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Paramatmaprakash by पंडित मनोहरलाल शास्त्री - Pandit Manoharlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ इस संस्कृत टीकाके अनुसार ही पंडित दोलतरामजीने त्रजभाषा बनाई । यद्यपि उक्त पंडितजीकृत भाषा प्राचीनपद्धतिसे बहुत ठीक- है परंतु आजकलके नवीन प्रचलित हिंदी- भाषाके संस्कारकमहाशयोंकी .दृष्टिमें वह भाषा सर्वदेशीय नहीं समझी जाती है । इस कारण ._ मैंने पंडित दौलतरामजीकृत भाषानुवादके अनुसार ही नवीन सररू हिंदीभाषामें अवि- ' : क्र अनुवाद किया है । इतना फेरफार अवश्य हुआ है कि उस भाषाकों अन्वय तथा ' भावार्थरूपमें वांद दिया है । अन्य कुछभी न्यूनाधिकता नहीं की है । कहीं लेखकोंकी भूछसे कुछ छूटगया है उसको भी मैंने संस्क्ृतटीकाके अनुसार संभाऊ दिया है। इस ग्रथका जो उद्धार खर्गाय तत््वज्ञानी श्रीमान्‌ रायचंद्रजी द्वारा खापित श्रीपरमश्रुत- प्रभावक्ंडलकी तरफसे हुआ है इसलिये उक्त मंडलके उत्साही प्रबंधक्ताओंको कोटिशः धन्यवाद देता हूं कि जिन्होंने अत्यंत उत्साहित होकर अंथ प्रकाशित कराके भव्य जीवोंको महान्‌ उपकार पहुंचाया है। और श्रीजीसे प्रार्थना करता हूं कि वीतरागम्रणीत उच्च श्रेणीके तत्त्ज्ञानका इच्छित प्रसार करनेमें उक्तमंडल कृतकार्य होवे । ह द्वितीय धन्यवाद श्रीमान्‌ ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीको दिया जाता है कि जिन्होंने इस ग्रंथकी संस्कृतटीकाकी प्राचीन प्रति छाकर प्रकाशित करनेकी अत्यंत प्रेरणा की । उन्हींके उत्साह दिलानेसे यह गंथ प्रकाशिंत हुआ है। अब मेरी अंतर्मे यह प्रार्थना है कि जो प्रमादवश दृष्टिदोपसे तथा बुद्धिकी न्यूनतासे कहीं अशुद्धियां रह गईं हों तो पठठकंगण मेरे ऊपर क्षमा करके शुद्ध करते हुए पढें क्योंकि इस आध्यात्मिक अंथर्में अशुद्धियोंका रहजाना संभव है । इस तरह धन्यवादपूर्वक प्रार्थना करता हुआ इस प्रस्तावनाको समाप्त करता हूं । अल विज्ञेषु । ह खत्तरगली हौदावाड़ी ' जैनसमाजका सेवक पो० गिरगांव-अंबई मनोहरलाल वैश्ाख वदि ३ वी० सं० २४४२ पाढम ( मैंनपुरी ) निवासी ।




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