दयानन्दतिमिरभास्कर | Dayanand Timir Bhaskar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
526
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६) दयानल्दतिमिर्भास्करः
- मगि गत्यथंक धातुसे 'मंगेरहच' इस सच्रसे मंगलशबद सिद्ध होताह जो आप
मंगल स्वरूप और सब जीवोके मंगलका फारण है इस कारण डस परमश्ररका नाम
मंगल है 'हुथ अवगमने' इससे धशब्द सिद्ध होताँह जो स्वयेबाथस्यदप आर
सब जीवेंकि बोधका कारण है इस लिये उस -परमेश्ररका नाम इध है ईगुनेर-
प्रतीभावे इस धातु शुक्रशब्द सिद्ध होता है जा अत्यन्त पत्रिच्च मिसके संगसे
जीवभी पवित्र होमांत हैं इस लिये परमश्वरफा नाम झुक्र है चर गतिभनक्षणयो३
इस धातुसे हॉनस अब्यय उपपद होनस दनेअर शब्द सिद्ध हुआ है जो सबमें सह:
जस प्राप्त धयवान् है इसस उस परमश्ररका नाम हॉनेश्वर है। रह त्याग इस धातुस
राह शब्द सिद्ध होतांहे जा एकान्तस्थरूप सिसके म्वरुपमें दूसरा पदार्थ संगक्त
नहीं जो दु्शोफी छोडन और अन्पकी छुड्ानहारा है इससे उस परस्म्वर्का नाम
राहु है. 'कित निवास इस धातुस कत॒ुशब्द सिद्ध होता जो सब रागास रहित
सब जगतका निवासम्थान है आर सट्क्षत्रोंकी झक्तिसमयमें सब रोगोंसे छुडझाता
है इसस उस परमात्माका नाम केतु हैं ( यह दोनो अर्थ अग्ुद् हैं )॥१०।६
स॒० पृ० १४पं ०२५ 'दो अवर्खडन! इस धाठुसे अदिति ओर इससे ताद्धित
करनेसे आदित्य शब्द सिद्ध होताह जिसका विनाश कभी नहीं हो इससे ईग्बस्की
आदित्य संज्ञा है ( यह अर्थभी अश्ुद्ध है किन्तु यहां दित्यादित्य” ४1१1८५ से ए्य
प्रत्यय है जा अदितिका अपत्य हो वह आदित्य है ) ॥८1१
स*०्पृ० २२ पं?९५ “गण संख्यान' इस धातुस गण शब्द सिद्ध हाता है
इसके आगे इंश और पति रखनेस गरणंशं और गणपति सिद्ध होते हैं जो प्रक
त्यादि जड और सच जीव प्रस्यात पदार्थोका स्वामी वह पालन फरनहाश है
इससे परमश्वरका नाम गणेश वा गणपति है ॥ १६1२५
स॒० पू० २३ पं० ४ शक्ल शक्तो इस धातुसे शक्तिशच्द बनतांह जा सब
जगतके बनानेमे समर्थ है इस लिये उस परमेश्ररका नाम शाक्ति है, नि सवा-
याम! इस धाठुसे श्रीशब्द सिद्ध होतादहे जिसका सवन सब जगवके विदान् यागा/
जन करते हैं इससे उस परमेश्वरका नाम्र श्री है 'लक्ष दशनकिनयों' इस धातुस
लक्ष्मी शब्द सिद्ध होताहे, जो सब॒ चराचर जगतकों देखता, चिहित अथर्वि
है हश्य बनाता जस शररके नन्न नासिका वृक्षेक पत्र पृष्प फल मूल प्रथ्वा जलके
कृष्ण रक्त श्वेत मृत्तिका पापाण चंद सर्यादि चिद्न बनाता तथा सबकी देखता .
सब श्ञोभाओंकी शोभा और जो वेदादि शाख वा धार्मिक विद्वान योगियोंका
छत्त अर्थात् देखने योग्य है इससे उस पर्मश्रका नाम लक्ष्मी गती! इस
घातसे सरस और टससे मतुए और डीप्त्यय हंनेसे सरस्वती हंछ सिद्ध
User Reviews
No Reviews | Add Yours...