साम भाष्य भूमिका | Saam Bhashya Bhoomika

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Saam Bhashya Bhoomika  by जवलप्रसाद शर्मा - Jawalprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सामभाष्यभध्ामिका | 5 म्मिसलेन गावेः परै ण सईुएुने सिग्स फ्टेड्टेय दि: वाहारेईईशेनक्तससः॥२९॥ हः वह वाणह जी विष्णु को गति के झपनी देह में युक्ते करे हैं डून्दिय॑ पमायारुपसे क्रौडा करने वाले को नहींजान सकती वह॒तीछ्ण ऋरंगवालाएथिवी का वहु पदार्थ वनी करता है दिव सथयौत्‌ देवसं चारकाल में विष्णु रुपदीखना है शैर एवि सथीन्‌ शस॒र संचार: काल में वश॒ह रूप दीखता है ॥ २९ ७ रप्षाब्चकारभक्तस्य पहादस्य स्वरूपतः है रणयकाशपु हु॒त्वा नस्से तहस्येनसः २९ या यह शत्वे। 1सेदौयेचेन्नेरेच्ज्या। भूर्णि स्पृगन्‍्नसवनेपुचुक्रुघकर्द शान नेया चिघत्‌*०_ हेपसमेम्चरवराह मैर न्हासिह रूसतुमकोा योगसक्षे में सात्म मति- | , विंवसम्बंधीमहावाककैहस सदायाचना कर्तामें निस कारए क्षय शील बुद्धिसे युक्त कामने नुकर्दफ्वर का याचन! नहींकिया॥२७॥ > & वामन रूप मास्थासबैंले क्यू विकमेः स्वंफेः चले अुद्वीव॑तेवध्वा तस्मैजल्लात्मने नमः २४ वामन रूस हौकरबलि के वोधकर्पपने तीन पैंड से नीने।लोक लियेउसब्राह्मए रूप केलिये नमस्कार॥ २५४




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