कल्याण मंदिर स्तोत्र | Kalyan Mandir Stotra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
798 KB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( भीताधयप्रदय ) संसारके दुखोंसे डरनेवारलोंको अमय पद
देनेवाले, ( अनिन्दितम् ) उत्कृष्ट और ( सैसारसागरमिमजद्-
शेपजन्तुपोतायसानस् ) भवसमुद्यें गोते खाते हुए सब जीवों-
के लिये जहाजके समान आचरण फरनेवाले अथीत् भवसमुद्रमें
बूबते हुए जीवॉका उद्धार करनेवाके ( जिनेश्वरथ ) बिनेन्द्र
भगवानके ( अब्डिपक्मस् ) चरणकमलोंको ( अभिनम्य ) नम-
स्कार करके; ( गरिमाम्वुराशेः ) गम्भीरताके समुद्र, ( यस्र )
जिसकी (स्तोन्न विधातुझ ) स्तुति करनेके लिये ( खय॑ सुविस्त॒त-
पति ) खय॑ सुविशाल्बुद्धि ( सुरगुरु। ) इृहस्पति भी ( विश्व! )
समर्थ ( न ) नहीं हैं, तथा ( क्मठसयधूसकेतो! ) कमठका
जमिमान मस करनेवाले ( तस्य तीथेंश्वरस ) उस पाश्चनाथल्ला-
मीकी ( किल ) आश्चर्य है कि ( एपश अहम ) में ( संस्तवने
करिष्ये ) स्तुति करता हूं | २॥
छन्दु तादक्क ( तीसमाज्ना अस्तमेंगुरु )
संगल मदर अतिशय सुंदर, अति उदार अधघायक हैं।
भव सयतें भयभीत भविककों, परम अमयपद दायक हैं ॥
तारनहार पोल सम जो जग,-जरूघिमप्न भविवृन्दनकों ।
बन्दन करिके श्रीजिनेन्द्रके, ऐसे पद अरविन्दनकों ॥ १॥
कमठ कूरके सदमन्दिरको, पावक सम दाहनहारे ।
गरिसासागर गुरु गुनआगर, आदि अनेक विरदवारे ॥
ग़ाद सकें नहिं गुनगन जिनके, सुरशुरु जैसे महामती।
ऐसे तीरथपति रिपिपतिके, शुन यावत हों मन्दमती ॥श।
१ जहाज ।
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