समवशरण | Samavasharan

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Shrisamavasharanadarpan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है. जीवोंकी रक्षा करना, प्रठपकार करना, सत्य बोलना, इत्यादि शुभयोग हैं इनसे पुण्यरूप कर्मोका आश्रव होता है तथा जीवोंका घात करना अस॒त्य बोलना, परधन हरण करना, ईर्पामाव रखना इत्यादि अशुभ योग हैं. तात्य्य यह है कि जो पुरुष अहँन्त परमात्माकी भक्ति आदि झुभकारणोंकों मिलाकर श्री अन्त परमात्मके असली खरूपको अनुभव ( चिन्तवन ) करते हैं उनके सम्यर्दर्शन सम्यग्शान सम्यक्‌ चारिजस्प रह्नत्रय धर्म तथा उत्तम क्षमादि दश धर्म खय॑ उसपन्न होते हैं क्योंकि यह नियम है कि महात्माओंके चरित्र पढ़ने व उनकी परम शान्तमयी मूर्तिका अवलोकन करने व उनकी वाह्मविभूति जो समवशरण नामक सभा है उसका चिन्ततन करने और अन्तरंग विभूत्ति अनन्त दर्शन अनन्त ज्ञान अनन्त सुख अनन्त बीव्येसहित अछ्टादश दोषोंसे रहित महात्माका चिन्तवन करनेसे अपूर्वमक्ति रसा्मतका पान होता है जिससे मदन पुण्यवंध होकर ध्यान व भक्ति करनेवाले भव्यपुरुषमी प्रमात्मपदको प्राप्त हो जते हैं और पापी पुरुषोंके चरित्र पढने व उनकी पापमयी मूर्तिका विचार करनेंसे चित्त महिन द्वोकर मनुष्य पापी हो जाता है. महाशयों | जिस समये आप श्रीअईन्त परमात्माके गर्स, जन्म, तप, ज्ञान, निवोण, कल्याणकोंकी शोमा तथा 8६ छियाढीस ग़ुणोंका चिन्त- बन करके उनके परमोदारिक सुवर्णकान्तियुक्त शरीरका जिसकी कान्तिके आगे कोटि सुख्येका प्रकाशमी मन्द हो जाता है तथा जो समवशरणके मध्य तीन पीठ पर स्थित गन्धकुटीमें सुवर्णमयी सिंहासनके उपर रक्तवर्ण सहसदलयुक्त कमलके उपर चार अल्लुछ अन्तरीक्ष ( अघर ) पद्मासन विराजमान हैं उनका चिन्तवन करेंगे व अपनेको भनुष्योंकी समा बैठा हुवा खयाल करके श्रीअह्दैन्त परमात्मके मुझसे निरक्षरी, मेघप्वनिके समान दिव्यध्वनिमं सत्यधरमोपदेशाउमृतकी बरषी हो रही है और द्वादश सभाओंमे असंख्याते जीव हषेचित्त बेठे हुवे धर्मोपदेशाओमृतका पान कर रहे हैं और में मी साक्षात्‌ श्ीमहन्त परमात्माका दरशनकर रहा 'हूँ




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