अँधा युग : समीक्षा | Andha Yug : Samiksha

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Andha Yug : Samiksha  by लक्ष्मणदत्त गौतम - Lakshmandatt Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रन्धा युग : कथा-डेल्प २५ बना दिया है। प्रहरी युग्म भ्रौर इृद्धयाचक उत्पाद्य पात्र हैं और उनसे सम्बद्ध घट- नाएँ भी उत्पाद ग्र्थात्‌ काल्पनिक हैं। अन्धा युग' के विषय में लेखक का यह कथन सही प्रतीत होता है 'बाह्य घटताग्रों की अपेक्षा साहित्यकार का ध्यान सामाजिक व्यवस्था द्वारा उद्भूत जटिल रागात्मक स्थितियों भ्रौर उनसे उत्पन्न होने वाली विषमताओों, विकृृतियों तथा श्रसन्तुलन पर केन्द्रित रहता है और वह उन्हीं का परिहार एवं परिष्कार करता है। कभी वह उसके लिए तात्कालिक नाम, स्थिति और पृष्ठभूमि ग्रहण करता है, कभी वह उसी को पौराणिक और काह्पतनिक देश-काल श्र पात्रों के माध्यम से अ्रभिव्यक्त करता है, कभी वहु उसके लिए भ्रप्रस्तुत प्रतीकों और संकेतों का आश्रय लेता है। साहित्यकार अपने स्तर पर, अपने ढंग से संस्कृति की विराट प्रक्रिया में योग देता है । रसानुभूति श्ौर सौन्दर्य बोध उसके माध्यम हैं, और युग, काल एवं स्थितियों के अनुसार जैसी भी जटिलताए होती हैं, वैसी ही सूक्ष्म तथा अप्रत्यक्ष रीति से वह अपना कार्य करता है ।' (मानव मूल्य और साहित्य, (१० १५२-१५३) प्रब हमें 'अन्धा युग की कथावस्तु का शास्त्रीय विवेचन करना है-- पहले भारतीय दृष्टिकोण से और फिर पाश्चात्य दृष्टिकोण से । भारतीय दृष्टिकोण से कथानक में पञ्न्च अर्थ प्रकृतियाँ बीज बिन्दु, पताका, प्रकरी और कार्य, कार्य को पंच अवस्था ए-- आर रंभ, यत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति और फलागम, तथा पञ्च संधियाँ-सुनियोजित होनी चाहिएँ। संधियाँ अर्थ प्रकृ- तियों और श्रवस्थाओ्रों के योग से बनती हैं। 'सन्धियों के नाम हैं, मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमश और निरवेहण । ये सन्धियाँ वस्तुत: कथावस्तु के स्थूल खण्ड कहे जा सकते हैँ, स्वभावत: इनसे क्रमशः नाटक के भी स्थूल खण्ड हो जाते हैं । नाठक में सन्धियों का प्रभिप्राय नाटक की समस्त ग्रर्थ-राशि को १रस्पर सम्बद्ध बनाना है । बीज और झारंभ को मिलाकर मुखसन्धरि होती है, बिन्दु श्र प्रयत्न को मिलाकर प्रतिमुखसन्धि, गर्भसन्धि में पताका और प्राप्त्याशा होती है, विमर्श में प्रकरी और नियताप्ति होती है और निवंहण में कार्य और फलागम संधि होती है। (रंगमंच और नाटक की भूमिका, पृ० ३३) 'भन्धायुग का लक्ष्य है-- मानव मूल्य की प्रतिस्थापता से मानव-भविष्य को सुरक्षित बनाने की घोषणा । इसके लिए लेखक को संघर्ष श्रौर विरोध के रास्ते से जाना पड़ता है; उसे




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