ईशोपनिषद | Ishopanishad

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Book Image : ईशोपनिषद  - Ishopanishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका। ५ में उक्त मंत्र चले आये है, और ईशोपनिपद्‌ का कोई ऐसा पाठ नहीं हे कि जिसमें “अग्ते नय” आदि मंत्र नहीं है। इस परिपादीके क्रमकों विचार कोदीम रफनेस पता छग जञायगा कि, “अग्ने नय!! आदि मंत्र प्रक्षिप्त नहीं है । तथापि देवता विचार फरके द्वी इस बातका निश्चय फरेंगे । (३ ) इस सबत का देवता । ज़िल सृफ्त अथवा मंत्र जिसका वणन द्वोता हैं. उस सूफ्त किंवा मंत्रक्ी धद देवता समझी जाती है। किसी फिसी सूक्‍त में देंघता चांचक एकह्दी शब्द प्रारंभसे अंत तक प्रयुक्त हुआ द्वीता है. त्‌ कई देसे सुफ्त हैं फि, झिनमें पकही देवताके चाचक अनेफ नाम उस स॒फ्तके अनेक मंत्रों प्रयुक्त दोते हैं । जिसमें देवताका एक ही नाम॑ प्रयुक्त धोता है, उल सूफ्त की देवताफे विपयमे संदेद् दी महीीं द्ोता, परंतु जिस सकक्‍तमें विभिश्न नामौका उप- योग द्वोवा ऐ, उस सूफ्तकी देवत।के निश्चय करने में शंका उत्पन्न द्वोती है । इसी देतुसे इस अध्याय की देवताके विपयमे कई थि- द्वार्नोकों संदेद्द दुआ है, इस लिये इसकी देयताका यहां विचार करंगे | देखिए, देवता निश्चय की रीति यह है कि प्रथम प्रध्येफ मंत्रका देवता-छूचक शब्द दे सना चादिये जैसा-- 4 मंत्र देवतासूचक.. परिशेष (चाजलनेयी संहिता. शब्द १ ईशा पास्य॑ ईश इश २ कुर्वश्वेेद छ ३ असुर्या नाप ० ० ४ अनेञ्देक पएकं, एव्त्‌ ० ५ तरेगति चत्‌ ०




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