महाभारत [भाग 9] | Mahabharat [Part 9]

Mahabharat [Part 9] by कृष्ण द्वैपायन व्यास - Krishna Dwaipayan Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २ ] भीष्मपव १४ हैं महाराज ! इस युद्ध में बहुत अधिक विनाश होगा, क्योंकि में ऐसे ही लक्षण देख रहा हूँ, जो बड़े भय-दायक प्रतीत होते हैं श्येना ग्रधाश्व काकाथ कड्ढाश्व सहिता बके! । सम्पतन्ति नगाग्रेषु समवायांश्र कुबेते ॥१»॥ श्येन (बाज) गीध, काक, बक, कंक, वृक्षों की चोटियों पर उड़ २ कर बैठते हैं और वहां इनका समूह इकट्ठा हो जाता है । अभ्यग्र॑ च प्रपश्यन्ति युद्धमानन्दिनों द्विजाः । क्रव्यादा भक्षयिष्यन्ति मांसानि गजवाजिनाम्‌ ॥१६॥ युद्ध को देखकर प्रसन्न होने वाले पक्षी सामने आ २ कर उद़ते हैं और मांस भोजी गीध और काक; हाथी और अश्वों के मांस खाने के लालायित हो रहे हैं. ॥१८॥ निर्देयं चाउमिवाशन्तों भेरवा भयवेदिनः । कड्ढाः प्रयान्ति मध्येन दक्षिणामभितों दिशम्‌ ॥१६॥ अत्यन्त भयके सूचक निर्दययतापूर्ण शब्द करते हुए कंकपत्षी मध्य में होकर दक्षिण दिशा को उड़े चले जाते हैं ॥ १६॥ . उसे पूर्वापरे संध्ये नित्यं पश्यामि भारत । उदयास्तमने स््य कबन्येंः परिवारितस्‌ ॥२०॥ दे भारत ! मैं नित्य प्रातः सायंकाल की दोनों संध्याओं को देखता हूँ, कि सूर्य के उदय और अस्तकाल में सूर्य कबन्धों से घिरा हुआ दृष्टि गोचर आता है ॥२०॥।




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