महाभारत [भाग 9] | Mahabharat [Part 9]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
988
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय २ ] भीष्मपव १४
हैं महाराज ! इस युद्ध में बहुत अधिक विनाश होगा, क्योंकि
में ऐसे ही लक्षण देख रहा हूँ, जो बड़े भय-दायक प्रतीत होते हैं
श्येना ग्रधाश्व काकाथ कड्ढाश्व सहिता बके! ।
सम्पतन्ति नगाग्रेषु समवायांश्र कुबेते ॥१»॥
श्येन (बाज) गीध, काक, बक, कंक, वृक्षों की चोटियों पर
उड़ २ कर बैठते हैं और वहां इनका समूह इकट्ठा हो जाता है ।
अभ्यग्र॑ च प्रपश्यन्ति युद्धमानन्दिनों द्विजाः ।
क्रव्यादा भक्षयिष्यन्ति मांसानि गजवाजिनाम् ॥१६॥
युद्ध को देखकर प्रसन्न होने वाले पक्षी सामने आ २ कर
उद़ते हैं और मांस भोजी गीध और काक; हाथी और अश्वों के
मांस खाने के लालायित हो रहे हैं. ॥१८॥
निर्देयं चाउमिवाशन्तों भेरवा भयवेदिनः ।
कड्ढाः प्रयान्ति मध्येन दक्षिणामभितों दिशम् ॥१६॥
अत्यन्त भयके सूचक निर्दययतापूर्ण शब्द करते हुए कंकपत्षी
मध्य में होकर दक्षिण दिशा को उड़े चले जाते हैं ॥ १६॥
. उसे पूर्वापरे संध्ये नित्यं पश्यामि भारत ।
उदयास्तमने स््य कबन्येंः परिवारितस् ॥२०॥
दे भारत ! मैं नित्य प्रातः सायंकाल की दोनों संध्याओं को
देखता हूँ, कि सूर्य के उदय और अस्तकाल में सूर्य कबन्धों से
घिरा हुआ दृष्टि गोचर आता है ॥२०॥।
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