आबुके जैन्मंदिरोके निर्माता | Abhu Jain Mandiro Ke Nirmata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९
खूयाठलमें लाकर पीरमतीका मन संकुचित रहा करता था, परन्तु
/भाग्यानि पूर्वतपसा किल संचितानि, काले फलन्ति पुरुषस
यथेह बृष्षा। ।!
॥ इच्छितसिद्धि ॥
विमलकुमारके सामा कुछ व्यापारभी करते थे, ओर कुछ
खेतीमी करते थे, विमलकुमार मामाके खेतों तफ जा रहाथा,
रासेमे जाते जाते कहीं पोली जमीन देखकर उसने हाथकी
लकडीकों वहां भोंक दिया, ठकडी सीधी नीचे ८ जाकर
वांकी होकर नीची चलीगई, विमलकुमारकों संशय पडा तो
उसने ऊपरसें कुछ माटी हटा दी, $ंछही नीचे खोदनेपर एक
चरु धनसे पूण मिल आया उसे लेकर कुमार घर आया
उसने वोह चरु अपनी माताकों देकर उसकी ग्राप्तिका वृत्ता-
नत कह सुनाया | वीरपली वीरमती अतिशय असन्न होकर
बोली-बेटा ! तूं भाग्यवान् है पुण्यवानोंके लिये सुनाजाता है
कि पढे पदे निधानानि' मुझे निथ्य होता है कि इस शुभप्र-
सड्भपर जो तुझे निधान मिला है, सो इस निमित्तसें अवश्य जाना
जाता है कि, श्रीदेवीभी पूणे सोभाग्यवती और प्रण्यवती है,
ओर इस उत्तम कन्याके घरमे आलनेसें तुमारी कीतिमें बहुत
कुछ बृद्धि होगी, बेटा ! जिनराजका धर्म आराधन करना ।
जिससे तेरे पुण्यकी ओरभी पुष्टि होगी।
पुष्कल धनके मिलनेसें वीरमतीका मन उत्साहित हुआ,
उसने माईके साथ विचार करके विवाहकी कुल सामग्री
तयार कराली, लग्नदिनके नजदीक आनेपर पीरमती अपने
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