भारत के सच्चे सपूत भाग - 1 | Bharat Ke Sacche Saput Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जार
आजा चावाा जाल आय
के घरमें हुआ था| इनके पिता भगवान शिवके बड़े भक्त
और उपासक् थे और शिवके परदानसे ही उन्हें शंकर जेसे
ज्ञानी पुत्र की प्राप्ति हुई थी। यह कथा ७८८ ई० की
बतायी जाती है। वाल्यावश्था से ही इनकी वृद्धि
तीक्षण ओर स्मरण शक्ति अच्छी थी। तोनव बे छी
आयु में ये मलयालस साहित्य के उत्तम ग्रन्थों का पाठ
कर लिया करते थे | पिता आचाय शिवशुरु ने पुत्र को
शाघ्त्रों के पठन-पाठव का प्रेरणा दी | नम्बुद्री ब्राह्मण
होने के नाते वे पुत्र को सबशास्त्रविद् बनाना चाहते थे
किन्तु, विधाता को यह मंजर न था। आचाये शिवगुरु
सहसा परछोक गमन झर शये और इनके छालन-पालन
का भार माता विशिष्टा देवी पर एड़ा जो स्वयं बड़ी
घर्म पारायण महिला थीं। ४ दषे की आयु में शंकर
का उपनयन हो गया। कहा जाता है कि सात वर्ष को
आयु में ही उन्होंने बेद-पेदान्त, स्वति-पुराण आदि का
अध्ययन समाप्त कर लिया ।
आठ वर्ष की आयु में माता विशिष्टा देवी की अनु-
मति लेकर शंकरओंकारवाथ द्वीप पर महायोगी गोविन्द
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