महाभारत कर्णपर्व | Mahabharat Karnparv

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Mahabharat Karnparv by बसन्त श्रीपाद सातवलेकर - Basant Shripad Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3-ीचनी+ श्रध्याय ४ ] कर्णपर्च श्डै /७3->२२७-२५२०२४ ७-* स॒ एव कदने कृत्या सहद्रणविदशारद; | परिवार्थ सहामाजे! पड़्लि। पएरमके रचैः । अशक्कतुवद्धिवा मत्युला केसन्पुप न पा/तेला। ॥ ६३ ॥ जो महारथी यद्धकों जानता था, जिसने श॒त्रुसहार किया था, उस अभिमन्युकोी जब कोई अकेला न मार सका, तब (द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचाये, कण, शर्य और कृतवर्मा ) कस की इन छः बड़े महार्थियोंने जिनझा अजुनपर वक्ष नहीं होता था, मिलके चारों ओरसे घेरकर 6३५५ अजुनकी इंपोसे मार डाला ॥ ६३ ॥ ते कृत पिरथ बीर क्षत्रधल उयवस्थितम्‌ । दा/शासानेमहाराज सामभद्र हतलतवान्नणे ॥ दे४ ॥ महाराज ! क्षात्रियोंके धममें तत्पर रहनेवाले वीर सुभद्रापुत्र अमिमन्युकोी रथहीन करके दुशशासनके पुत्रने युद्धमें मारा ॥ ६७४ ॥ बृहन्तस्तु महेष्वासः कृतासख्रो युद्धदु्मदः । दुशशासनेन विक्रम्य गशितों ससादनम्‌ ॥ ६७ ॥ महा धनुद्धांरी, शस्रविद्याका जाननेवाला, रणमत्त बुहन्त नामक राजा दुशशासनसे युद्ध करके यमराजके घरकों चला गया ॥ ६७ ॥ मणिसान्दण्डधारथ राजानौ युद्धदुमदी । पराक्रमन्तों मिन्नार्थ द्रोणेन विनिषातितो ॥ ६६ ॥ युद्धम॑ मत्त रहनेवाले, राजा मणिमान्‌ ओर दण्डघार मित्रके निमित्त बल दिखानेवालोंको द्राणाचायने युद्धम मार डाला ॥ ६६ ॥ अंशुमान्भोजराजस्तु सहसेन्‍्यों महारथः । भारद्वाजेन विक्रल्य गम्ितों थसादनम्‌ ॥ ९७॥ 2 1 सर महारथी भोजराज अंशुमानूकी उनकी सेनाके सहित महर्षि भरद्वाजके पुत्र द्रोणाचायने यमलोककी भेज दिया ॥ ६७ ॥ था चित्रायुधश्चित्रयोधी कृत्वा तो कदन सहत्‌। चित्रमागेंण विक्रम्य कर्णन बिहती युधि ॥ ६८ ॥ राजा चित्रायुध ओर राजा चित्रयोधी विचित्र मा्मसे पराक्रम युक्त युद्ध करके और शत्रुओंको व्याकुल करके दोनों युद्धमें कणके हाथसे मारे गये ॥ ६८ ॥ वृकोदरससो युद्धे इढ। केकयजो युधि। केकय्रेनेव विक्रम्प आता आता निषातितः ॥ ६९ ॥ जो केकयज युद्धमें मीमके समान था, दृढ़ निश्रगी था, वह अपने साथी कैकय वीरोंके सहित अपने भाई केकयके साथ युद्ध करके मारा गया ॥ ६९ ॥ मै




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