तुलसीदास नाटक | Tulsidas Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
99
श्रेणी :
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No Information available about कृष्णा कुमार मुखोपाध्या - krishna Kumar Mukhopadhya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विवाह कर तुम्हें संलार आश्रममें प्रवेश कराऊँ। मेंने एक ब्राह्मण को
प्रतिश्रति भी दी हे कि। उनकी कन्याखे तुम्हारा विवाह कछुंगा ।
तुलसी;-म्रभू ! आपहीका दिया हुआ यह प्राण हे-नहीं तो आज
संघारख तुललीदासका अस्तित्व विलीन हो जाता, आपका
आदेश मेरे लिये इंशवर आदेशके समान है । क् क्
नरासिह!-ई/वर तुम्दारा मड्गल करें-पुत्र ! मेरा कर्तव्य तुम्हारे
प्रति जहाँतक मुझसे हो सका दे मेंने विचारा अब में तुम्हारे
'विवाहके पश्चात अन्यत्र जाऊंगा |
तुलसी;-वब क्या प्रभू आप हमको छोड जायग ? में अपने
पिता-माताकों नहीं जानता, न कभी उन्हें दखा है. में जन्मसे पिठ
माठहीन हूँ परंतु देव! आपके ज्लेहसे मेंने कभी उनका अभाव अनु
भव नहीं “किया. आपको ही में अपना पिता और आपको ही में
माताके समान देखता हूँ. पिताकी भांति आपने मुझे शिक्षा दी
मेरे उपनयन आदि संस्कार किये और आपने द्वी माताकी
भांति मेरा छाछन किया. मेरी छोटी छोटी आवश्यकताओंका
अल्ुभव कीया और अब आप हमे छोड़ जायेंगें कया देव! फिर
द्वितीयवार पितृहदीन होना पडेंगा
नरसिंह;-पय धरो पुत्र । व्याकुछ मत होओ समय आयगा
सब फिर मेरा तुम दश्शन पाओोगे | तुदसीदास--
नाम तुम्हारा एक दिन.
होगा प्रचारित समस्त भारतमें ।
करता हूँ आशीवांद ।
रहे मति,
रघुवीर पंदमें सदा ।
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