जरा संघ माल्लिका | Jara Sangh Mallika

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Jara Sangh Mallika by ब्रजगोपाल दास अग्रवाल - Brajgopal Das Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ ४ कलिज के दोस्तों में जिसके साथ सबसे ज्यादा मित्रता थी, कालेज ज्छोडने के वाद भी उसमें दरार नहीं पड़ी, उमका नाम था हीरालाल। उसका घर बंगाल देश में कही या । मुझे ठीक पता न था। वह एक दिन एकाएक मेरे अध्ययन-कक्ष में भाकर बोला, 'मेरी शादी है । तुम्हें भेरे पांव चलना पड़ेगा । ४ मैं बोला, 'सर्वेनाश 1।' ४ सर्वेवाश बयो ?! « अरे हम लोग ठहरे पक्के कलकत्ता के लोग । सियालदह स्टेघन पर गाड़ी चढना हमारे शास्त्र में वर्जित है । » हीरालाल सुनना नही चाहता । उसे समझाकर कहा, 'कलकत्ता से बाहर भी बंगला देश है, मगर हम लोगो के लिए उसका अस्तित्व प़िफे मूगोल के पन्नों में है। मेरी मा-बहनं, बुआ-मौसी किसीने भूगोल नही पढ़ा । पढा होगा, तो भूल गई हैं।” “ हीरालाल पूरा चेंटू था। 'गांव का गंवार' । उसने सीधे मेरे पिताजी के पास जाकर आविदन प्रस्तुत किया, और एक तरह से जबरदस्ती उसे मंजूर करा लाया। माँ नाराज हुईं। विधवा बहन मंजरी भी गुस्से में लाल थी। विदाई के दिन बिस्तर आदि तैयार कर सूटकेस लगाकर गंभीर होकर बोली, “दादा, देखना, दोस्त के देभ कौ कोई विद्यावती सिर पर सवार न हो जाए




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