प्रीत गंगा | Preet Ganga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) कब मैने चाहा था कोई दु ख में मेरा साथ निमाये कव चाहा एकान्त क्षणो मे, कोई प्रिय की याद दिलाये लेकिन दुनियावालो तुमसे एक निवेदन करता हूँ मैं मेरी पीडा, मेरी सगिनि, इसे न कोई ठेस लगाये। (१८) बन्द पडे € द्वार द्दय के प्राणप्रिये अब योलो मन की पीडा, य्यया कया अनफही आज तक बोलो व्यर्थ सोघना इस जीवन में यया यौया फया पाया सातताये जो मन की पीडा, उस पर ध्यार उँठेलो। प्रीत-गगा र्प




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