सती सीता | Sati Seeta

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Sati Seeta  by कृष्ण विजय - Krishna Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा परिच्छेद | १५ आजकल स्थ्रियोंकों मिट्टी, कोयला, राक्ष भौर ठोकरे भावि खानेकी इच्छा होती है भौर इसीलिये उनकी सनन्‍्तान भी घैसीही निकस्मी आती है। गर्मावस्‍थामें स्त्रियोंका दोहद देखकर गर्धष्प सन्‍्तानके गुण अवशुण आद्की कदपना की जा सकती है एक दिन गर्भावजाम सीताकी दाहिनी साख फड़क उठो | सीता यह भशुम लक्षण देशकर कुछ उदास हो गयीं भौर उन्होंने .. रामचक्से यंह हाल कहकर पूछा कि यह अनिष्ट दूर करनेके लिये फ्या करना चाहिये ? रामने कद्दा-- प्रिये ! यह दोष दूर करनेके लिये भरी जिने- श्वरदेषके मम्द्रिमें दीपमाल और आंगीकी रचना फराझो, दीतव ओर दुल्लीजनोंको उदारता पूर्थक दान दो मौर ऐसेही शुभ कार्यों में ज्ञी लगाओ। एधबर शादेगा तो अतिष्ट मवश्य दूर हो ज्ञायगा। पतिदेघकी यह बात सुन सीताने उपरोक्त सभी सत्कार्य . किये और रामसन्द्रके भादेशाजुसार शुभकार्यों में जी छगाया; परन्तु न जाने क्‍यों, इससे उनके चित्तको शान्ति न मिली । इसी समय एक दिन गगरके कई प्रतिष्ठित सज्ञनोंने राम- चन्रफे पास भाकर कहा--“राजन ! निःसम्देह आप पड़े न्‍्यायी और घर्मनिष्ठ हैं, परन्तु आपके हाथसे एक कार्य पेसा हीत हो गया है, कि जिसके लिये चारों भोर भ्रापकी निन्‍दा हो रहो है। लोग कहलते हैं कि रामने सीताका स्थीकार कर उसे परट- रानी यनाया है सो बड़ाही अनुचित किया है। उनका कथन है कि रावण जेसे कामी पुरुषके यहाँ छ; महीने रहकर मी




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