साहित्य बिंदुः | Sahitya Bindu

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Sahitya Bindu by विद्यासागर - Vidhyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ धदोषन्साहिहपदियी शुपरेशेन विद्राशपसनादि--शामादिवायेपु, तिशृत्तिः--परश्रोहरंघादि-- राविणादि-शर्येपु 4 सोरोत्तरवर्शनानिपुरर दिरु में कास्यप 8 सश्रेदमुच्यते भृक् बयेस्तेम बास्येन याएवेय घमुष्मत' । पररप हदये खत यप्म घृर्ता- यते दिरः ॥ प्रादिपदादितिहाएी रामायरा-महाभारतादिः। भवेक्षए मं: पुनरतुसग्पास तसस्या तिपुणता ड्युसत्तिर॒प्पुक्तैव 1 वाव्यज्षशिक्षाया काध्यक रशायम्याराः । यदाहुवूं डा: प्रभार गुरुपाग्ते यः वाध्ये रचता* दर: १ तमरयाएँ दिदुः। सपमैवाशयः 'धुतेस मत्नेन घ यागुपाप्तिता ध्रुव रुूरोह्येद दमप्यव॒ुप्रहति'ति वण्डिना प्वनितः॥ था प्रर मम्मटन्यम्मत दक्तप्ादि वा लदाण परते हैं-- शक्तिमिति-- पास्योत्पत्ति में मम्मठाचार्य तौन हैठु बतलाते हैं--एव' शक्ति, दूसरा सोवश स्थ्रताध्यादि से जायमान निषुणता, तीसरा वाव्य-बोविदों की पक्ष से उत्पन्त प्रम्यास । हेतु शम्द यहाँ असाधारण कारण का वोधषक है । जैसे जात्पाकृति सूत्र मे जात्यादि तीनो मिलकर एक पदार्थ का योधन करती हैं, बँंसे हो धक्ति भादि तीनो मिलकर हो वाव्य-कारण है; (यक्‌-वूषझ नहीं। कार्यानुकुल कारण में होनेवाला सामथ्यें हो धक्ति है। भवनुवूलता बया है ? यह वतलाते हैं--प्रनुफूलत्व॑ चेति--परनु- कूलता यहाँ समयं-प्राह्म है। फलनिठ्ठ जो जम्पता--वायंता तप्निरूपित जनवत्व-+कारण॒त्व €प । लोक पद से यहाँ लोकवृत्त लेना चाहिये। आस्त्रपदवोध्य श्रुति ( वेद ) प्रोर स्मृति ( धर्मझास्त्र ) भ्रादि हैं। जैसा- कि भट्टपाद ( कुमारिल ) ने कहा है । प्रदृत्तिबेंति--जिसके द्वारा पुरुषों की प्रवृत्ति अ्रथवा निवृत्ति बतचाई जावे, श्रुति श्रादि से भ्रधवा पुराणों से, वह शास्त्र कहलाता है । प्रवृत्ति->प्रतिदिन सन्ध्यादि नित्यकर्म करना, सत्य बोलना भादि । निवृत्तिन-'किसी के घत को न चाहो' 'नो अत्त्य ओलता है वह समूल नष्ट हो जाता है' इत्यादि वाक्यो से सम्ध्या करना, सत्य बोलना भादि मे भ्रवृत्ति श्ौर चोरो करना, भूठ बोलना थादि हे पिवृत्ति मानी है वंयोक्ति चोरी करना और भूठ बोलना पाप है । बढ़ा




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