साहित्य बिंदुः | Sahitya Bindu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र
में साहित्यविपंयों का सा भघुराक्षेरों में स्पष्ट भौर तलरपर्शी विश्लेषण
हुआ है वह तो साहित्यविद्वानु ही बताएगे | यद्यपि यह ग्रन्थ प्रत्पवाय
है तथांयि काव्यप्रकाशवत्ु-ताटकादि भेदो से विरहित नही, साहित्यदपंण-
बत् विषयविवेचता दरिद्र नहीं, प्रमेगांश को एरिष्कृत करता हुआ भी
रसगड्भापरवत् -- दुष्प्रधप्ये ( दुरूह ) नहीं, झजकार-कौस्तुमवतु--
ध्रनुपयुक्त विघ्तारवहुल नहीं, चद्धालोक ताहित्यताखतु--केवलपद्बद्ध
नहों, पचबंद्ध प्रत्यो में विवश॑तादेश प्रदिपाद्य दिषयो का सकोच करना
पड़ता है पुर्ण विश्लेषण नहीं हो पाता ।
साहिरपबिखु के विर्माए-प्रयोज॑व
इस प्रत्थ के निर्माण-प्रयोजन निम्नन्निणित हैं--
छात्रों को तर्त रीति से साहित्यशास््र का सामान्य ज्ञान कराना।
प्रतकारादि के सेंद-प्रभेदों को उत्तमत से बचाना । बआलाचीनन्साहित्य
प्रत्यो के गन्दे अश्लील उदाहरणो से हटाकर शिक्षाप्रद उदाहरणो द्वारा
भारतीय सम्यता एवं सस्कृति की ओर झ्ग्रसर करता। प़ाम्प्रत्रिक
शध्पश्रमी छात्रों को परिष्कृत्सरलसस्कृत द्वारा वाद-युग की प्राचीन
पद्धति में अवृत्त कराना । जिन ग्रन्थों में यह पद्धति नहीं है उनको
विद्वित्समान प्रादर की दृष्टि से नहीं देखता प्रद्युत स्राहिएयशञात्र की इस
जापा को नट्टभार्यों सानता है, भौर कहता है कि साहित्य कोई प्रौढ विद्या
नहीं, परन्तु रसगज्जाघर धलकार-कौस्तुभ साहित्यविन्दु प्रत्यो के निर्माण
के पश्चात् शव विद्वःसमाज भी 'साहित्यशाजत््र कोई प्रौढ विद्या नही! यह
कहने का साहस नहीं क्र सकेगा । साहित्यविन्दु में पदपद पर
शाख्ान्तर प्रभाणीं से साहित्य विषयों को उपोद्लित किया गया है
जिससे यह बात प्रवगत हो जावे कि साहित्यशात्न सब शाद्घों का सार
है। पिष्टेषण भय से सभी उदाहरण भी यहाँ पवित्र एव केनाप्यनाधात,
दिये हैं । साहित्यविन्दु के पचासो स्थलो में काव्यप्रकाश्य, शाहित्यद्पण,
और बाहुल्येन रसगज्जाघर पर विचार किया गया है वह किसी गे से
नहीं, प्रद्युत वादयुय की प्राचीन पद्धति की रक्षार्थ । भट्ठमस्मट भौर
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