वृहद विवाह पद्धति | Vrihad Vivah Paddati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
995 KB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
को स्यागने योग्य है। इसके अतिरिक्त देवता, ऋषि, ग्रह
तारा, अग्नी, नदी, हृक्षादिर ऊे नाम से नो कन्या हो तथा
जिसऊे शरीर ऊपर पहुत रोम पिंगाक्ती और घरघरा
स्वर बाली हो, उस उन््या फा पाणी अहण वर्जित है ।
“क्न्यादाने वरस्प विक्ृत कुछ यथा” वर कन्या से हीन
हो, एूर हो, वधु सहित हो, दरित्र हो, व्यस्त (क) संयुक्त
हो, कन्या ऐसे कुल और पु६प फो वर्जित है। इसऊे अतिरिक्त
मूखे, निर्धन, दूर देश में रहने याला, शर, योद्धा, मोफ्षामि-
ल्यपी, पन््या से तीन गुणी अधिक उमर वाला, ऐसे पुरुष
को भी कन्या न देनी चाहिये। इस यास्ते अग्रिक्ृत कुल का
और दोनों विद्धृत. कुछ बालों का उिवाह सम्पन्य जोड़ना
योग्य है तथा पांच शुद्धियें देख कर वर वघु का सयोग
करना चाहिये, वे इस प्रकार हैं ;--
१ राशि, २ योनि, ३ गण, ४ नादो और ४ थे,
ये पांच शुद्धिया वर में देख कर कन्या देनी
चाहिये। इसऊे सिवाय जो उन््या रजस्व॒ला होती है उसका
विवाह शांघ्र होना चाहिये। अच्छे वर को देख फर ऐसी
कन्या का जित्राह शीघ्र से शीघ्र ही कर देना उचित हैं।
चारदान ( सगाई) की रीति
उपरोक्त -ल्क्षण देखने के वाद सगाई होती है।
चारदान [ सगाई ] की रीति इस प्रकार है | प्रथम शुभ
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