महादेवी और उनका आधुनिक कवि | Mahadevi Aur Unaka Adhunik Kavi

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Mahadevi Aur Unaka Adhunik Kavi by भारतभूषण सरोज - Bharatabhushan Saroj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रालोचना-भांग र्प्‌ “बस्तुतः वर्तमानयुगीन कवियों में वे रहस्ववाद की सदसे सफल गायिका हैं। इस दिल्ा में उन्होंने दाशनिक आधार-केन्द्रों की अपेक्षा भाव-मावुरी पर अधिक बल दिया। इसलिए अद्व तवाद और सर्वात्मबाद भी उनके यहाँ दर्गन- शास्त्रीय जटिलता से मुक्त है तथा उनमें आत्मनिवेदव अथवा आ्रात्मसमर्पण का स्वाभाविक प्रवाह विद्यमान है। लौकिक प्रतीकों के माध्यम से आध्यात्म- 'तत्त्व की प्र ममयी श्रभिव्यक्ति उनके काव्य की अनन्य विजेपता हैं, किन्तु यह उल्लेख श्रप्नासंगिक न होगा कि कहीं-कही ग्राध्यात्मिक मूल्यों के निर्वाह में ' उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली है। कही-कहीं लौकिक प्रणयाधार इतना विक्ृत्त रहा है कि यह संभावना सत्य प्रतीत होती है कि उन्होंने ब्रह्म को उतना सप्राण नही माना है, जितना कि मीरावाई ने कृष्ण को माना था। इस्तीलिए ऐसे स्थानों पर उनकी भावदाएं ग्रनपेक्षित रूप में रहस्यात्मक, तथा दुरुह हो गई हैं। किन्तु यह स्थिति उनकी कविता में वहुत विरल है। प्राय: 'नीहार' से 'दीपशिख।' तक उनकी रहस्य-साधना में एक निश्चित साधना-क्रम को लक्षित किया जा सकता है, जो उत्तरोत्तर गम्भीर और उज्ज्वल होता चला गया है। उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया है कि वर्तेमान युग में रहस्यवाद का आधार भवितकालीन कवियों की भाँति श्रात्मिक न रहकर किचित्‌ विक्ृत हो गया है। यथा--'इस काव्यघारा की अपाथिव पाथिवता और साधना की , नयूनता ने सहज ही सबको अपनी ओर श्राकपित कर लिया है, अश्रतः यदि , इसका रूप कुछ विकृृत होता जा रहा हो तो आ्राइचर्य की वात नहीं । हम यह समझ नहीं सके हैं क्रि रहस्यवाद आत्मा का गुण है, काव्य का नहीं--- (महादेवी की साहित्य-साधना--डा० सुरेशच-द्र गुप्त)” । प्रन्‍त्त ३--महादेवी के काव्य की दाशनिक पृष्ठ- भूमि को स्पष्ट कोजिए । उत्तर--हिन्दी साहित्य में महादेवी जी का स्थान महत्वपूर्ण है । उन्होंने हाँ इतनी काव्य-कृतियाँ प्रस्तुत की है वहाँ उनके साथ अपने दृष्टिकोणों को भी सूमिकाश्रों में स्पष्ट किया है जितके फलस्वरूप उनकी रचनामप्रों को बोध- गम्य करना सहज हो गया है । महादेवी जी उस दुद्धिवाद में विश्वास नहीं करती जो श्राज के वैज्ञानिक युग का मूल है। महादेवी जी जगत व्यापार के समाधान के लिए वृद्धि को अययेष्ट समझती हैं--मिरे सम्पुर्ण मानसिक विकास में उस वुद्धि-प्रसृत चितन




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