भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य | Bhakti Aandolan Aur Suradas Ka Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरे संस्करण की भूमिका
आज हम जिसे भारतीय सस्क्ृोति कहते है उसके निर्माण मैं भक्ति आदोलन
की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके विभिन्न रूपो पर उस आदोलन की
अमिट छाप है। भाषा और साहित्य ही नही सगीत, नृत्य, चित्र, मूर्ति, स्थापत्य
आदि कलाओ के साथ धर्म तथा दर्शन की जो सजीव और सार्थक परपराए भार-
तीय जन-जीवन में घुली-मिली है उनमे से अधिकाश भक्ति आदोलन की देन
हैं। भक्ति आन्दोलन के व्यापक और स्थायी प्रभाव का एक कारण यह है कि उसमे
भारतीय सस्क्ृति के अतीत की स्मृति है, अपने समय के समाज तथा सस्क्ृति की
सजग चेतना है और भविष्य की गहरी चिता भी है। यह केवल सास्क्ृतिक
आदोलन ही नही है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक आदोलन भी है, क्योकि उसमे
सस्क्ृत के विभिन्न रूपो में जनता के सामाजिक जीवन की वास्तविकताओ और
आकाक्षाओ की अभिव्यक्ति मिलती है।
भक्ति आदोलन का लक्ष्य है मानुष-सत्य या कि मनुष्यत्व की रक्षा और
विकास । भकक््तिकाव्य की सपूर्ण रचनाशीलता इसी लक्ष्य की ओर उन्समुख है।
भक्त कवियो की दृष्टि मे मानूष-सत्य के ऊपर कुछ भी नही है--न कुल, न जाति,
न धर्म, न सप्रदाय, न सत्री-पुरुष का भेद, न किसी शास्त्र का भय और न लोक
का भ्रम । इन सबका दुराग्रह हमेशा मनुष्यत्व के विकास में बाधक बनता है,
इसलिए इनकी भक्ति काव्य मे नि्द्ध और निर्भीक आलोचना है। समाज मे
तरह-तरह के भेद-भाव पर टिकी व्यवस्था की जगह मनुष्यत्व पर आधारित समता-
मूलक और मानवीय व्यवस्था की कामना भक्ति काव्य में है, जिससे आज भी
शोषित-पीडित भारतीय जनता प्रेरणा और शक्ति पाती है।
भवित हृदय का धर्म है। हृदय के धर्मों मे सर्वाधिक व्यापक, उदात्त और
मानवीय धर्म है प्रेम । वही भक्ति का मूल भाव और भक्ति काव्य का बीज-भाव
भी है। वह मनुष्य को कुल, जाति, धर्म, सप्रदाय आदि की सीमाओ से ऊपर उठाता
है और हर तरह की सत्ता के भय से मुक्त करता है। भक्ति काव्य मे प्रेम सुफियों
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