श्री श्री विदग्धमाधव नाटक | Shri Shri Vidagdhmadhav Natak

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Shri Shri Vidagdhmadhav Natak by श्री श्यामदास - Shri Shyamadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द-- परम-करुणामय कलियुग-पावनावतार श्रीश्रीकष्णचेतन्यदेव को झसीम अनुकम्पा से, उनके परम दयितस्वरूप, मनोभीष्ट- सस्थापक, भक्ति- रस-प्रस्थानाचार्य श्रीरूपयोस्वामि-प्रभुपाद की अनुपम रचना- “श्रोविदरध- माघव नाटक”सुधी पाठकवृन्द के हस्तकमलो मे समपंण करते हुए मुझे अत्ति हएं है । श्रमासिक “श्रीहरिनाम” के साथ साथ वैसे तो छोठे-मोटे अनेक प्रकाशन श्रीहरिनाम सद्भीत्त 6 मण्डल की बोर से वरावर प्रकाश्षित् होते ही चले आ रहे हैं, किन्तु श्रीकृष्दास कविराजकृत श्रीबैतन्यचरितामृत तथा श्रीजीवगोस्वामिविरचित श्री श्रीगोपालच म्पू जैसे विशाल ग्रन्य-रत्नो के बाद मण्डल की ओर से यह एक तोस्तरी बहुमुल्य भेट है । यह वह अनवद्य ग्रन्थ-रत्न है जिसके विषय में स्वय श्रीमस्महाप्रभु में समस्त भकक्‍तो के बीच स्पष्ट शब्दों में कहा था-- मधुर प्रसन्न इंहांर काव्य सालड्ार । ऐसे फ्वित्व बित्ु नहे रसेर प्रचार ॥ श्रीचेतन्य चरितामृत ३-१-१४३ ॥ -छूपगोस्वामि को यह रचना मद्चुर कवित्व से पूर्ण है, अलज्भा र- युक्त है एव चित्त को प्रसन्नता विधान करने वाली है। एसे कवित्व के दिता रस का प्रचार नही हो सकता है।” अर्थात्‌ यह रचना अतिरसमय है। इसके अध्ययन मनन, से चिन्मय- रस का आस्वादन प्राप्त हो सकता है। सर्वेरस-मुकुटमणि मधुररस दो प्रकार का हैं । स्वकीया-भावमय मधुररस तय परिक्तीया-भावमय मधुर रस । परकीय-भावमय मघररस भे ही सर्वाधिक रस का उल्लास है। उसी रस का अश्येप-विशज्वेष आस्वादन करने के लिये ही रसिक-चूडामणि भगवान्‌ ब्जेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण श्रीदृन्दावन प्रकट-लोला को प्रकाशित करते हैं। इस




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