नव तत्व | Nav Tatav
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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२१
) भिसके उदयसे जीव अपनी पर्याप्तियोंसे युक्त
हो, उसे पर्याप्त! नामकर्म कहते हैं ।
(४) जिस कर्मसे एक शरीरमें एक ही जीव स्वामी
रहे, उसे प्रत्येक' नामकमे कहते हैं ।
(५) जिस कर्मसे जीवके दाँत, हड्डी आदि अवयव
मजबूत हों, उसे 'स्थिर! नामकर्म कहते हैं ||
(६) जिस कर्मसे जीवक्ी नामिक्रे ऊपरका भाग
शुभ हो, उसे शुभ” नामकर्म कहते हैं ।
(७) जिस कर्मसे जीव, सबका प्रियपात्र हो, उसे
“सौभाग्य” नामकर्म कहते है ।
(८) जिस कर्मसे जीवका स्वर [ आवाज ] केयक्ष
की तरह मधुर हो, उसे 'सुस्वर! नामकर्म कहते है' ।
(६) जिस कर्मसे जीवका वचन लोगोंमें आदरणीब
हो, उसे' आदेय” नामकर्म कहते है' ,
(१०) जिस कर्मसे लोगोंमें यश और कीति फैले,
उसे 'यशःकोर्ति' नामकरम कहते है' ॥ १२॥
पापत्तत्त्व 1
नाणतरायद्सग,
नव बीए नीअउसाय मिच्छत्त ।
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