षटखंडागम भाग 15 | Satkhandagama Bhag 15

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Satkhandagama Bhag 15  by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ ५.१ ६० ६१ कु धरे पंक्ति १३ १६ १४ २४ १६ २६ ३९ १३ ११ ११ २६ ३९ २६ जा शुद्धि-पत्र अशुद् सब द्वव्यों में निवद्ध है; वह सब पयोयों में निवद्ध नहीं है ॥ 19 7) 99 ग्राप्त पचसत्ती ९ अकशेण द्रव्यों में निवद्ध है, संब पयोगों में नहीं ॥ नाम कृतियां फारणपरुपमावण्णरस जन ' तद॒वलभादो इसके अतिरिक्त मिथ्यात्व उसमें आचरिमासु .उदेरिदि ति भणति उदीरणंतर सत्तण्णपमुदरभो सात के उदीरकों से एक आवली में संचित हुए भआंठ के सम्पाइड्टी सत्तउदीरंतरुप्त . मिच्छाइटिप्पहुडि जयन्य बे यु वे प्रमत्त, अप्रमत्त ओर अपूवकरण इन तीन गुणाथानों में पाये चेव शुद्ध ेु सब द्वव्यों ओर असये ( छुछ ) पयायों में िबद्ध है।। .' 95 ्‌ 9) प्र) प्राप्त * पच[सत्ती अकमेण द्रव्यों और कुछ पर्यायों में निबद्ध है ॥ नाम ग्रकृतियां फारणसरूचमावएणस्स घंन तदुबलंभादो तथा मिथ्यात्व ८. ह अचिरमासु उदीरेदि त्ति भणंति उदीरणातरं सत्तण्णमुदीरश्रो ;ृ एक आवबली में संचित हुए आठ के सम्माइट्टी सत्त उदीरंतरप्त मिच्छाहं ड्विप्पहुडि जचघन्य . प्रमत्त और अप्रमच में वे सब तथा अपू्य - करण में सातके बिना तीन स्थान पाये चेव




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