विवरणप्रेमय संग्रह | Vivaranaprameya Sangrah

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Vivaranaprameya Sangrah by ललिता प्रसाद डबराल - Lalita Prasad Dabral

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) वौधायन यस्य सूत्र शाखा यस्य च याजुपी । भारद्वाज यस्‍्य गोज्न सवेज्ञःस हि माघवः ॥ प्रतीत होता है कि माधवाचार्यका कुछ नाम 'सायण” था। स्वेदशनसंग्रहके प्रारम्भ छोकमें उन्होंने अपनेको सायणरूपी क्षीरसागरका कौस्तुभ कहां है--- श्रीमत्सायणदुरघाव्येः कौस्तुमेव महौजसा | क्रियते माधवाय्येंग.. स्वेदशनसंग्रहः ॥ पूर्वेषामतिदुस्तराणि खुतरामाकोच्य.. शाल्राण्यसौ । श्रीमत्सायणमाधवः प्रभुरुपन्यासत्‌ सतां प्रीतये ॥ माषवीय धातुबृत्तिके आरम्म छोकमें उन्होंने अपने श्रीपितचरण मायणकों भी सायण उपाधिसे अछड्कृत किया है-- अत्ति श्रीसह्रमक्ष्मापः प्ृथ्वीतलपुरन्दरः। तस्य मन्त्रशिखारत्रमस्ति मायणसायणः ॥ पिताके नामके साथ सायणशठ्दका प्रयोग करनेसे स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि सायण माधवका कुछ नाम था । वेदमाष्यकार सायणाचार्य अपने कुलनामसे ही प्रसिद्ध थे । पराशरमाधवर्मे उन्होंने 'सायणों भोगनाथश्व” वाक्य द्वारा सायणके कुरुनामका ही उल्लेख किया है । तैत्तिरीयसंहिताके भाष्यके आरम्भ छोकसे भी उनका 'सायण” कुछ नाम था, यही स्फुट प्रतीत होता है-- अन्वशात्‌ माधवाचाय वेदाथस्य प्रकाशने | स॒ ग्राह दृपतिं राजन्‌ सायणायों ममाउनुजः । सब वेत्त्येष वेदानां व्याख्यातृत्वे नियुज्यताम्‌ ॥ इत्युक्तो माधवार्येणग वीरुक्महीपतिः । अन्वशात्‌ सायणाचार्य वेदार्थस्य प्रकाशने |! जहांपर 'सायणमाघवीय” इस प्रकारका उल्लेख है, वहांपर भी, 'सायण! कुल नाम ही संगत होता है और जहां पर 'सायणाचार्यविरचिते माधवीये! ऐसा उल्लेख है, वहांपर माधवाचार्यकी आज्ञसे सायण द्वारा विरचित यही अर्थ युक्ति- युक्त प्रतीत होता है। और भी अनेक स्थढोंमें श्रीसायणाचार्यकी कुछनामसे प्रसिद्धि देखी गई है। अतः माधवाचार्यक्ा 'सायण? कुलनाम ही था। श्रीमाधवाचार्यजीके अन्धोंके अवकोकनसे प्रतीत होता है कि उनके तीन




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